हम वहीं के वहीं ठहरे रह गये
जीवन में क्या बनोगे
क्या बनना चाहते हो
अक्सर पूछे जाते थे
ऐसे सवाल।
अपने आस-पास
देखते हुए
अथवा बड़ों की सलाह से
मिले थे कुछ बनने के आधार।
रट गईं थी हमें
बताईं गईं कुछ राहें और काम,
और जब भी कोई पूछता था
हम ले देते थे
कोई भी एक-दो नाम।
किन्तु मन तब डरने लगा
जब हमारे सामने
दी जाने लगीं ढेरों मिसालें
अनगिनत उदाहरण।
किसी की जीवनियाँ,
किसी की आहुति,
किसी की सेवा
और किसी का समर्पण।
कोई सच्चा, कोई त्यागी,
कोई महापुरुष।
इन सबको समझने
और आत्मसात करने में
जीवन चला गया
और हम
वहीं के वहीं ठहरे रह गये।