एक डर में जीते हैं हम

उन्नति के शिखर पर बैठकर भी

अक्सर एक अभाव-सा रह जाता है,

पता नहीं लगता

क्या खोया

और क्या, कैसे पाया।

एक डर में जीते हैं,

न जाने कहां

पांव फिसल जायें

और

आरम्भ करना पड़े

एक नया सफ़र।

अपनी ही सफ़लताओं का

आनन्द नहीं लेते हम।

एक डर में जीते हैं हम।