मेरी पुस्तकों की कीमत

दीपावली, होली पर

खुलती है अब

पुस्तकों की आलमारी।

झाड़-पोंछ,

उलट-पलटकर

फिर सजा देती हूँ

पुस्तकों को

डैकोरेशन पीस की तरह ।

बस, इतने से ही

बहुत प्रसन्न हो लेती हूँ

कि मेरी

पुस्तकों की कीमत

कई सौ गुणा बढ़ गई है

दस की सौ हो गई है।

सोचती हूँ

ऐमाज़ान पर डाल दूँ।