अच्छा ही हुआ

अच्छा ही हुआ

कोई समझा नहीं।

कुछ शब्द थे

जो मैं यूॅं ही कह बैठी,

मन का गुबार निकाल बैठी।

कहना कुछ था

कह कुछ बैठी।

न नाराज़गी थी

न थी कोई खुशी।

पर कुछ तो था

जो मैं कह बैठी।

बहुत कुछ होता है

जो नहीं कहना चाहिए

बस मन ही मन में

कुढ़ते रहना चाहिए

अन्तर्मन जले तो जले

पर दुनिया को

कुछ भी पता न चले।

वैसे भी मेरी बातें

कहाॅं समझ आती हैं

किसी को।

पर

ऐसा कुछ तो था

जो नहीं कहना चाहिए था

मैं यूॅं ही कह बैठी।