मधुर भावों की आहट

गुलाबी ठंड शीत की

आने लगी है।

हल्की-हल्की धूप में

मन लगता है,

धूप में नमी सुहाने लगी है।

कुहासे में छुपने लगी है दुनिया

दूर-दृष्टि गड़बड़ाने लगी है।

रेशमी हवाएं

मन को छूकर निकल जाती हैं

मधुर भावों की आहट

सपने दिखाने लगी है।

रातें लम्बी

दिन छोटे हो गये

नींद अब अच्छी आने लगी है।

चाय बनाकर पिला दे कोई,

इतनी-सी आस

सताने लगी है।