भव्य रावण

क्यों हम

भूलना ही नहीं चाहते

रावण को।

हर वर्ष

कितनी तन्मयता से

स्मरण करते हैं

पुतले बनाते हैं

सजाते हैं

और उनके साथ

कुम्भकरण और मेघनाथ भी

आते हैं

अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित।

नवरात्रों और दशमी पर्व पर

सबसे पहले

रावण को ही

स्मरण करते हैं।

कितना बड़ा मैदान

कैसा मेला

कितने पटाखे

और कितने भव्य हों पुतले।

उस समय

स्मरण ही नहीं आता

कि इस पुतले को

बुराई के प्रतीक के रूप में

बना रहे हैं

जलाने के लिए।

राम और दुर्गा

सब पीछे छूट जाते हैं

और हम

दिनों-दिनों तक याद करते हैं

रावण को,

अह! कितना भव्य था इस बार।

कितनी रौनक थी

और कितना आनन्द आया।