विचारों का झंझावात

अजब है

विचारों का झंझावात भी

पलट-पलट कर कहता है

हर बार नई बात जी।

राहें, चौराहे कट रहे हैं

कदम भटक रहे हैं

कहाँ से लाऊँ

पत्थरों से अडिग भाव जी।

जब धार आती है तीखी

तब कट जाते हैं

पत्थरों के अविचल भराव भी,

नदियों के किनारों में भी

आते हैं कटाव जी।

और ये भाव तो हवाएँ हैं

कब कहाँ रुख बदल जायेगा

नहीं पता हमें

मूड बदल जाये

तो दुनिया तहस-नहस कर दें

हमारी क्या बात जी।

तो कुछ

आप ही समझाएँ जनाब जी।