Share Me
क्यों पूछते हो
कहाँ आ गये।
अक्सर लगता है
जहाँ से चले थे
वहीं के वहीं खड़े हैं
कदम ठहरे से
भाव सहमे से
प्रश्न झुंझलाते से
उत्तर नाकाम।
न लहरों में
लहरें
न हवाओं में
सिरहन
न बातों में
मिठास
न अपनों से
अपनापन
भावहीन-सा मन
क्यों पूछते हो
कहाँ आ गये
एक अर्थहीन
ठहराव में जी रहे हैं
क्यों पूछते हो
कहाँ आ गये।
अक्सर लगता है
जहाँ से चले थे
वहीं के वहीं खड़े हैं।
Share Me
Write a comment
More Articles
अकारण क्यों हारें
राहों में आते हैं कंकड़-पत्थर, मार ठोकर कर किनारे।
न डर किसी से, बोल दे सबको, मेरी मर्ज़ी, हटो सारे।
जो मन चाहेगा, करें हम, कौन, क्यों रोके हमें यहां।
कर्म का पथ कभी छोड़ा नहीं, फिर अकारण क्यों हारें।
Share Me
Share Me
मैं और मेरी बिल्लो रानी
छुप्पा छुप्पी खेल रहे थे
कहां गये सब साथी
हम यहां बैठे रह गये
किसने मारी भांजी
शाम ढली सब घर भागे
तू मत डर बिल्लो रानी
मेरे पीछे आजा
मैं हूं आगे आगे
दूध मलाई रोटी दूंगी
मां मंदिर तो जा ले।
Share Me
आज भी वहीं के वहीं हैं हम
कहां छूटा ज़माना पीछे, आज भी वहीं के वहीं हैं हम
न बन्दूक है न तलवार दिहाड़ी पर जा रहे हैं हम
नज़र बदल सकते नहीं किसी की कितनी भी चाहें
ये आत्म रक्षा नहीं जीवन यापन का साधन लिए हैं हम
Share Me
प्रेम की एक नवीन धारा
हां, प्रेम सच्चा रहे,
हां , प्रेम सच्चा रहे,
हर मुस्कुराहट में
हर आहट में
रूदन में या स्मित में
प्रेम की धारा बही
मन की शुष्क भूमि पर
प्रेम-रस की
एक नवीन छाया पड़ी।
पल-पल मानांे बोलता है
हर पल नवरस घोलता है
एक संगीत गूंजता है
हास की वाणी बोलता है
दूरियां सिमटने लगीं
आहटें मिटने लगीं
सबका मन
प्रेम की बोली बोलता है
दिन-रात का भान न रहा
दिन में भी
चंदा चांदनी बिखेरने लगा
टिमटिमाने लगे तारे
रवि रात में भी घाम देने लगा
इन पलों का एहसास
शब्दातीत होने लगा
बस इतना ही
हां, प्रेम सच्चा रहे
हां, प्रेम सच्चा लगे
Share Me
जीवन के पल
जीवन के
कितने पल हैं
कोई न जाने।
कर्म कैसे-कैसे किये
कितने अच्छे
कितने बुरे
कौन बतलाए।
समय बीत जाता है
न समझ में आता है
कौन समझाये।
सोच हमारी ऐसी
अब आपको
क्या-क्या बतलाएं।
न थे, न हैं, न रहेंगे,
जानते हैं
तब भी मन
चिन्तन करता है हरपल,
पहले क्या थे,
अब क्या हैं,
कल क्या होंगे,
सोच-सोच मन घबराये।
जो बीत गया
कुछ चुभता है
कुछ रुचता है।
जो है,
उसकी चलाचल
रहती है।
आने वाले को
कोई न जाने
बस कुछ सपने
कुछ अपने
कुछ तेरे, कुछ मेरे
बिन जाने, बिन समझे
जीवन
यूं ही बीता जाये।
@@googleAddHere
Share Me
आज मौसम मिला
आज मौसम मिला।
मैंने पूछा
आजकल
ये क्या रंग दिखा रहे हो।
कौन से कैलेण्डर पर
अपना रूप बना रहे हो।
अप्रैल में अक्तूबर,
और मई में
अगस्त के दर्शन
करवा रहे हो।
मौसम
मासूमियत से बोला
आजकल
इंसानों की बस्ती में
ज़्यादा रहने लगा था।
माह और तारीखों पर
ध्यान नहीं लगा था।
उनके मन को पढ़ता था
और वैसे ही मौसम रचने लगा था।
अपने और परायों में
भेद समझने में लगा था।
कौन किसका कब हुआ
यह परखने में लगा था।
कब कैसे पल्टी मारी जाती है,
किसे क्यों
साथ लेकर चलना है
और किसे पटखनी मारी जानी है
बस यही समझने में लगा था।
गर्मी, सर्दी, बरसात
तो आते-जाते रहते हैं
मैं तो तुम्हारे भीतर के
पल-पल बदलते मौसम को
समझने में लगा था।
.
इतनी जल्दी घबरा गये।
तुमसे ही तो सीख रहा हूँ।
पल में तोला,पल में माशा
इधर पंसेरी उधर तमाशा।
अभी तो शुरुआत है प्यारे
आगे-आगे देखिए होता है क्या!!!
Share Me
यह जीवन है
कुछ गांठें जीवन-भर
टीस देती हैं
और अन्त में
एक बड़ी गांठ बनकर
जीवन ले लेती हैं।
जीवन-भर
गांठों को उकेरते रहें
खोलते
या किसी से
खुलवाते रहें,
बेहिचक बांटते रहें
गांठों की रिक्तता,
या उनके भीतर
जमा मवाद उकेरते रहें,
तो बड़ी गांठें नहीं लेंगी जीवन
नहीं देंगी जीवन-भर का अवसाद।
Share Me
वन्दे मातरम् कहें
चलो
आज कुछ नया-सा करें
न करें दुआ-सलाम
न प्रणाम
बस, वन्दे मातरम् कहें।
देश-भक्ति के गीत गायें
पर सत्य का मार्ग भी अपनाएं।
शहीदों की याद में
स्मारक बनाएं
किन्तु उनसे मिली
धरोहर का मान बढ़ाएं।
न जाति पूछें, न धर्म बताएं
बस केवल
इंसानियत का पाठ पढ़ाएं।
झूठे जयकारों से कुछ नहीं होता
नारों-वादों कहावतों से कुछ नहीं होता
बदलना है अगर देश को
तो चलो यारो
आज अपने-आप को परखें
अपनी गद्दारी,
अपनी ईमानदारी को परखें
अपनी जेब टटोलें
पड़ी रेज़गारी को खोलें
और अलग करें
वे सारे सिक्के
जो खोटे हैं।
घर में कुछ दर्पण लगवा लें
प्रात: प्रतिदिन अपना चेहरा
भली-भांति परखें
फिर किसी और को दिखाने का साहस करें।
Share Me
जीवन की डगर चल रही
राहें पथरीली
सुगम सुहातीं।
कदम-दर कदम
चल रहे
साथ न छूटे
बात न छूटे,
अगली-पिछली भूल
बस बढ़ते जाते।
साथ-साथ
चलते जाते।
क्यों आस करें किसी से
हाथों में हाथ दे
बढ़ते जाते।
जीवन की डगर चल रही,
मंज़िल की ओर बढ़ रही,
न किसी से शिकवा
न शिकायत।
धीरे-धीरे
पग-भर सरक रही,
जीवन की डगर चल रही।