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भावनाओं का वेग
किसी त्वरित नदी की तरह
अविरल गति से
सीमाओं को तोड़ता
तीर से टकराता
कंकड़-पत्थर से जूझता
इक आस में
कोई तो आयेगा
थाम लेगा गति
सहज-सहज।
.
जीवन बीता जाता है
इसी प्रतीक्षा में
और कितनी प्रतीक्षा
और कितना धैर्य !!!!
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More Articles
दैवीय सौन्दर्य
रंगों की शोखियों से
मन चंचल हुआ।
रक्त वर्ण संग
बासन्तिका,
मानों हवा में लहरें
किलोल कर रहीं।
आंखें अपलक
निहारतीं।
काश!
यहीं,
इसी सौन्दर्य में
ठहर जाये सब।
कहते हैं
क्षणभंगुर है जीवन।
स्वीकार है
यह क्षणभंगुर जीवन,
इस दैवीय सौन्दर्य के साथ।
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कृष्ण ने किया था शंखनाद
महाभारत की कथा
पढ़कर ज्ञात हुआ था,
शंखनाद से कृष्ण ने किया था
एक ऐसे युद्ध का उद्घोष,
जिसमें करोड़ों लोग मरे थे,
एक पूरा युग उजड़ गया था।
अपनों ने अपनों को मारा था,
उजाड़े थे अपने ही घर,
लालसा, मोह, घृणा, द्वेष, षड्यन्त्र,
चाहत थी एक राजसत्ता की।
पूरी कथा
बार-बार पढ़ने के बाद भी
कभी समझ नहीं पाई
कि इस शंखनाद से
किसे क्या उपलब्धि हुई।
-
यह भी पढ़ा है,
कि शंखनाद की ध्वनि से,
ऐसे अदृश्य
जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं
जो यूं
कभी नष्ट नहीं किये जा सकते।
इसी कारण
मृत देह के साथ भी
किया जाता है शंखनाद।
-
शुभ अवसर पर भी
होता है शंखनाद
क्योंकि
जीवाणु तो
हर जगह पाये जाते हैं।
फिर यह तो
काल की गति बताती है,
कि वह शुभ रहा अथवा अशुभ।
-
एक शंखनाद
हमारे भीतर भी होता है।
नहीं सुनते हम उसकी ध्वनियां।
एक आर्तनाद गूंजता है और
बढ़ते हैं एक नये महाभारत की ओेर।
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आई आंधी टूटे पल्लव पल भर में सब अनजाने
जीवन बीत गया बुनने में रिश्तों के ताने बाने।
दिल बहला था सबके सब हैं अपने जाने पहचाने।
पलट गए कब सारे पन्ने और मिट गए सारे लेख
आई आंधी, टूटे पल्लव,पल भर में सब अनजाने !!
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औरत होती है एक किताब
औरत होती है एक किताब।
सबको चाहिए
पुरानी, नई, जैसी भी।
अपनी-अपनी ज़रूरत
अपनी-अपनी पसन्द।
उस एक किताब की
अपने अनुसार
बनवा लेते हैं
कई प्रतियाँ,
नामकरण करते हैं
बड़े सम्मान से।
सबका अपना-अपना अधिकार
उपयोग का
अपना-अपना तरीका
अदला-बदली भी चलती है।
कुछ पृष्ठ कोरे रखे जाते है
इस किताब में
अपनी मनमर्ज़ी का
लिखने के लिए।
और जब चाहे
फाड़ दिये जाते हैं कुछ पृष्ठ।
सब मालिकाना हक़
जताते हैं इस किताब पर,
किन्तु कीमत के नाम पर
सब चुप्पी साध जाते हैं।
सबसे बड़ा आश्चर्य यह
कि पढ़ता कोई नहीं
इस किताब को
दावा सब करते हैं।
उपयोगी-अनुपयोगी की
बहस चलती रहती है
दिन-रात।
वैसे कोई रैसिपी की
किताब तो नहीं होती यह
किन्तु सबसे ज़्यादा
काम यहीं आती है।
अपने-आप में
एक पूरा युग जीती है
यह किताब
हर पन्ने पर
लिखा होता है
युगों का हिसाब।
अद्भुत है यह किताब
अपने-आपको ही पढ़ती है
समझने की कोशिश करती है
पर कहाँ समझ पाती है।
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जीवन की नवीन शुरुआत
जीवन के कुछ पल
अनमोल हुआ करते हैं,
बड़ी मुश्किल से
हाथ आते हैं
जब हम
सारे दायित्वों को
लांघकर
केवल अपने लिए
जीने की कोशिश करते हैं।
नहीं अच्छा लगता
किसी का हस्तक्षेप
किसी का अपनापन
किसी की निकटता
न करे कोई
हमारी वृद्धावस्था की चिन्ता
हमारी हँसी-ठिठोली में
न बने बाधा कोई
न सोचे कोई हमारे लिए
गर्मी-सर्दी या रोग,
अब लेने दो हमें
टेढ़ेपन का आनन्द
ये जीवन की
एक नवीन शुरुआत है।
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मेरा नाम श्रमिक है
कहते हैं
पैरों के नीचे
ज़मीन हो
और सिर पर छत
तो ज़िन्दगी
आसान हो जाती है।
किन्तु
जिनके पैरों के नीचे
छत हो
और सिर पर
खुला आसमान
उनका क्या !!!
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आशाओं का उगता सूरज
चिड़िया को पंख फैलाए नभ में उड़ते देखा
मुक्त गगन में आशाओं का उगता सूरज देखा
सूरज डूबेगा तो चंदा को भेजेगा राह दिखाने
तारों को दोनों के मध्य हमने विहंसते देखा
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सोने की हैं ये कुर्सियां
सरकार अपनी आ गई है चल अब तोड़ाे जी ये कुर्सियां
काम-धाम छोड़-छाड़कर अब सोने की हैं जी ये कुर्सियां
पांच साल का टिकट कटा है हमरे इस आसन का
कई पीढ़ियों का बजट बनाकर देंगी देखो जी ये कुर्सियां
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यह जिजीविषा की विवशता है
यह जिजीविषा की विवशता है
या त्याग-तपस्या, ज्ञान की सीढ़ी
जीवन से विरक्तता है
अथवा जीवित रहने के लिए
दुर्भाग्य की सीढ़ी।
ज्ञान-ध्यान, धर्म, साधना संस्कृति,
साधना का मार्ग है
अथवा ढकोसलों, अज्ञान, अंधविश्वासों को
व्यापती एक पाखंड की पीढ़ी।
या एकाकी जीवन की
विडम्बानाओं को झेलते
भिक्षा-वृत्ति के दंश से आहत
एक निरूपाय पीढ़ी।
लाखों-करोड़ों की मूर्तियां बनाने की जगह
इनके लिए एक रैन-बसेरा बनवा दें
हर मन्दिर के किसी कोने में
इनके लिए भी एक आसन लगवा दें।
कोई न कोई काम तो यह भी कर ही देंगे
वहां कोई काम इनको भी दिलवा दें,
इस आयु में एक सम्मानजनक जीवन जी लें
बस इतनी सी एक आस दिलवा दें।
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अपने मन के संतोष के लिए
न सम्मान के लिए, न अपमान के लिए
कोई कर्म न कीजिए बस बखान के लिए
अपनी-अपनी सोच है, अपनी-अपनी राय
करती हूं बस अपने मन के संतोष के लिए