Share Me
भाव भी तो लौ-से दमकते हैं
कभी बुझते तो कभी चमकते हैं
मन की बात मन में रह जाती है
कुछ सपने आंखों में ही दरकते हैं
Share Me
Write a comment
More Articles
नेह का बस एक फूल
जीवन की इस आपाधापी में,
इस उलझी-बिखरी-जि़न्दगी में,
भाग-दौड़ में बहकी जि़न्दगी में,
नेह का बस कोई एक फूल खिल जाये।
मन संवर संवर जाता है।
पत्ती-पत्ती , फूल-फूल,
परिमल के संग चली एक बयार,
मन बहक बहक जाता है।
देखएि कैसे सब संवर संवर जाता है।
Share Me
रिश्तों के तो माने हैं
पेड़ सूखे तो क्या
सावन रूठे तो क्या
पत्ते झरे तो क्या
कांटे चुभे तो क्या।
हम भूले नहीं
अपना बसेरा।
लौट लौट कर आयेंगे
बसेरा यहीं बसायेंगे
तुम्हें न छोड़कर जायेंगे।
दु:ख सुख तो आने जाने हैं।
पर रिश्तों के तो माने हैं।
जब तक हैं
तब तक तो
इन्हें निभायेंगे।
बसेरा यहीं बसायेंगे।
Share Me
हम तो आनन्दित हैं, तुमको क्या
इस जग में एक सुन्दर जीवन मिला है, मर्त्यन लोक है इससे क्या
सुख-दुख तो आने जाने हैं,पतझड़-सावन, प्रकाश-तम है हमको क्या
जब तक जीवन है, भूलकर मृत्यु के डर को जीत लें तो क्या बात है
कोई कुछ भी उपदेश देता रहे, हम तो आनन्दित हैं, तुमको क्या
Share Me
आंसू और हंसी के बीच
यूं तो राहें समतल लगती हैं, अवरोध नहीं दिखते।
चलते-चलते कंकड़ चुभते हैं, घाव कहीं रिसते।
कभी तो बारिश की बूंदें भी चुभ जाया करती हैं,
आंसू और हंसी के बीच ही इन्द्रधनुष देखे खिलते।
Share Me
हिन्दी की हम बात करें
शिक्षा से बाहर हुई, काम काज की भाषा नहीं, हम मानें या न मानें
हिन्दी की हम बात करें , बच्चे पढ़ते अंग्रेज़ी में, यह तो हम हैं जाने
विश्वगुरू बनने चले , अपने घर में मान नहीं है अपनी ही भाषा का
वैज्ञानिक भाषा को रोमन में लिखकर हम अपने को हिन्दीवाला मानें
Share Me
हिंदी दिवस की आवश्यकता क्यों
14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को संविधान में राष्ट््रभाषा के रूप में मान्यता दी गई और हम इस दिन हिन्दी दिवस मनाने लगे। क्यों मनाते हैं हम हिन्दी दिवस? हिन्दी के लिए क्या करते हैं हम इस दिन? कितना चिन्तन होता है इस दिन हिन्दी के बारे में। हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर सरकारी, गैर सरकारी हिन्दी संस्थाएं कितनी योजनाएं बनती हैं? अखिल भारतीय स्तर के हिन्दी संस्थान हिन्दी की स्थिति पर क्या चिन्तन करते हैं? क्या कभी इस बात पर किसी भी स्तर पर चिन्तन किया जाता है कि वर्तमान में हिन्दी की देश में स्थिति क्या है और भविष्य के लिए क्या योजना होना चाहिए? शिक्षा में हिन्दी का क्या स्तर है, क्या इस बात पर कभी चर्चा होती है?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं में हैं।
प्रत्येक कार्यालय में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। भाषण-प्रतियोगिताएं, लेखन प्रतियोगिताएं, कवि-सम्मेलन, कुछ सम्मान और पुरस्कार, और अन्त में समोसा, चाय, गुलाबजामुन के साथ हिन्दी दिवस सम्पन्न। तो इसलिए मनाते हैं हम हिन्दी दिवस।
नाम हिन्दी में लिख लिए, नामपट्ट हिन्दी में लगा लिए, जैसे छोटे-छोटे प्रचारात्मक प्रयासों से हिन्दी का क्या होगा?
हम चाहते हैं कि हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो, हिन्दी शिक्षा का माध्यम बने, किन्तु क्या हम कोई प्रयास करते हैं? क्या आज तक किसी संस्था ने हिन्दी दिवस के दिन सरकार को कोई ज्ञापन दिया है कि हिन्दी को देश में किस तरह से लागू किया जाना चाहिए। हिन्दी संस्थानों का कार्य केवल हिन्दी की कुछ तथाकथित पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित करना, पुरस्कार बांटना और कुछ छात्रवृत्तियां देने तक ही सीमित है। हां, हिन्दी सरल होनी चाहिए, दूसरी भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में लिया जाना चाहिए, हिन्दी बोलचाल की भाषा बननी चाहिए, अंग्रेज़ी का विरोध किया जाना चाहिए, बस हमारी इतनी ही सोच है।
वर्तमान में भारतीय भाषा वैभिन्नय एवं वैश्विक स्तर से यदि देखें तो हिन्दी में] हिन्दी माध्यम में एवं प्रत्येक विधा, ज्ञान का अध्ययन असम्भव प्रायः है, यह बात हमें ईमानदारी से मान लेनी चाहिए। हिन्दी को अपना स्थान चाहिए न कि अन्य भाषाओं का विरोध।
आज हिन्दी वर्णमाला का कोई एक मानक रूप नहीं दिखाई देता। दसवीं कक्षा तक विवशता से हिन्दी पढ़ाई और पढ़ी जाती है। किन्तु यदि हिन्दी विषय को, भाषा, साहित्य, इतिहास को प्रत्येक स्तर पर अनिवार्य कर दिया जाये तब हिन्दी को सम्भवतः उसका स्थान मिल सकता है। उच्च शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर हिन्दी की एक परीक्षा, अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए, हिन्दी साहित्येतिहास, अनिवार्य कर दिया जाये, तब हिन्दी की स्थिति में सुधार आ सकता है।
आज हम बच्चों के लिए अपनी संस्कृति,परम्पराओं की बात करते हैं। यदि हम हिन्दी पढ़ते हैं तब हम अपनी संस्कृति, सभ्यता, प्राचीन साहित्य, कलाओं, परम्पराओं , सभी का अध्ययन कर सकते हैं। और इसके लिए एक बड़े अभियान की आवश्यकता है न कि हम यह सोच कर प्रसन्न हो लें कि अब तो फ़ेसबुक पर भी सब हिन्दी लिखते हैं।
अतः किसी एक दिन हिन्दी दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं है, दीर्घकालीन योजना की आवश्यकता है।
Share Me
निडर भाव रख
राही अपनी राहों पर चलते जाते
मंज़िल की आस लिए बढ़ते जाते
बाधाएँ तो आती हैं, आनी ही हैं
निडर भाव रख मन की करते जाते।
Share Me
जब आग लगती है
किसी आग में घर उजड़ते हैं ।
कहीं किसी के भाव जलते हैं ।
जब आग लगती है किसी वन में
मन के संताप उजड़ते हैं ।
शेर-चीतों को ले आये हम
अभयारण्य में ।
कोई बताये मुझे
क्या कहूं उस चिडि़या से,
किसी वृक्ष की शाख पर,
जिसके बच्चे पलते हैं ।
Share Me
हर चीज़ मर गई अगर एहसास मर गया
मेरी आंखों के सामने
एक चिड़िया तार में फंसी,
उलझी-उलझी,
चीं-चीं करती
धीरे-धीरे मरती रही,
और हम दूर खड़े बेबस
शायद तमाशबीन से
देख रहे थे उसे
वैसे ही
धीरे-धीरे मरते।
तभी
चिड़ियों का एक दल
कहीं दूर से
उड़ता आया,
और उनकी चिड़चिडाहट से
गगन गूंज उठा,
रोंगटे खड़े हो गये हमारे,
और दिल दहल गया।
उनके प्रयास विफ़ल थे
किन्तु उनका दर्द
धरा और गगन को भेदकर
चीत्कार कर उठा था।
कुछ देर तक हम
देखते रहे, देखते रहे,
चिड़िया मरती रही,
चिड़ियां रूदन करती रहीं,
इतने में ही
कहीं से एक बाज आया,
चिड़ियों के दल को भेदता,
तार में फ़ंसी चिड़िया के पैर खींचे
और ले उड़ा,
कुछ देर चर्चा करते रहे हम।
फिर हम भीतर आकर
टी. वी. पर
दंगों के समाचारों का
आनन्द लेने लगे।
क्रूरता की कोई सीमा नहीं ।
हर चीज़ मर गई
अगर एहसास मर गया।
Share Me
जल की महिमा
बूंद-बूंद से घट भरे, बूंद-बूंद से न घटे सागर
जल की महिमा वो जाने, जिसके पास न गागर
पानी की बरबादी चुभती है, खड़़े पानी में कीट
अंजुरी-भर पानी ले, सोचिए कैसे रखें पानी बचाकर