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राजनीति में,
अक्सर
लोग बात करते हैं,
किसी के
पदचिन्हों पर चलने की।
किसी के विचारों का
अनुसरण करने की।
किसी को
अपनी प्रेरणा बनाने की।
एक सादगी, सीधापन,
सरलता और ईमानदारी!
क्यों रास नहीं आई हमें।
क्यों पूरे वर्ष
याद नहीं आती हमें
उस व्यक्तित्व की,
नाम भूल गये,
काम भूल गये,
उनका हम बलिदान भूल गये।
क्या इतना बदल गये हम!
शायद 2 अक्तूबर को
गांधी जी की
जयन्ती न होती
तो हमें
लाल बहादुर शास्त्री
याद ही न आते।
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जब एक तिनका फंसता है
दांत में
जब एक तिनका फंस जाता है
हम लगे रहते हैं
जिह्वा से, सूई से,
एक और तिनके से
उसे निकालने में।
किन्तु , इधर
कुछ ऐसा फंसने लगा है गले में
जिसे, आज हम
देख तो नहीं पा रहे हैं,
जो धीरे-धीरे, अदृश्य,
एक अभेद्य दीवार बनकर
घेर रहा है हमें चारों आेर से।
और हम नादान
उसे दांत का–सा तिनका समझकर
कुछ बड़े तिनकों को जोड़-जोड़कर
आनन्दित हो रहे हैं।
किन्तु बस
इतना ही समझना बाकी रह गया है
कि जो कृत्य हम कर रहे हैं
न तो तिनके से काम चलने वाला है
न सूई से और न ही जिह्वा से।
सीधे झाड़ू ही फ़िरेगा
हमारे जीवन के रंगों पर।
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करते रहते हैं बातें
बढ़ती आबादी को रोक नहीं पाते
योजनाओं पर अरबों खर्च कर जाते
शिक्षा और जानकारियों की है कमी
बैठे-बैठे बस करते रहते हैं हम बातें
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मज़बूरी से बड़ी होती है जिद्द
सुना है मैंने,
रेत पर घरौंदे नहीं बनते।
धंसते हैं पैर,
कदम नहीं उठते।
.
वैसे ऐसा भी नहीं
कि नामुमकिन हो यह।
सीखते-सीखते
सब सीख जाता है इंसान,
‘गर मज़बूरी हो
या जिद्द।
.
मज़बूरी से बड़ी होती है जिद्द,
और जब जिद्द हो,
तो रेत क्या
और पानी क्या,
घरौंदे भी बनते हैं ,
पैर भी चलते हैं,
और ऐसे ही कारवां भी बनते हैं।
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कांगड़ी बोली में छन्दमुक्त कविता
चल मनां अज्ज सिमले चलिए,
पहाड़ां दी रौनक निरखिए।
बसा‘च जाणा कि
छुक-छुक गड्डी करनी।
टेडे-फेटे मोड़़ा‘च न डरयां,
सिर खिड़किया ते बा‘र न कड्यां,
चल मनां अज्ज सिमले चलिए।
-
माल रोडे दे चक्कर कटणे
मुंडु-कुड़ियां सारे दिखणे।
भेडुआं साई फुदकदियां छोरियां,
चुक्की लैंदियां मणा दियां बोरियां।
बालज़ीस दा डोसा खादा
जे न खादे हिमानी दे छोले-भटूरे
तां सिमले दी सैर मनदे अधूरे।
रिज मदानां गांधी दा बुत
लकड़ियां दे बैंचां पर बैठी
खांदे मुंगफली खूब।
गोल चक्कर बणी गया हुण
गुफ़ा, आशियाना रैस्टोरैंट।
लक्कड़ बजारा जाणा जरूर
लकड़िया दी सोटी लैणी हजूर।
जाखू जांगें तां लई जाणी सोटी,
चड़दे-चड़दे गोडे भजदे,
बणदी सा‘रा कन्ने
बांदरां जो नठाणे‘, कम्मे औंदी।
स्कैंडल पाईंट पर खड़े लालाजी
बोलदे इक ने इक चला जी।
मौसम कोई बी होये जी
करना नीं कदी परोसा जी।
सुएटर-छतरी लई ने चलना
नईं ता सीत लई ने हटणा।
यादां बड़ियां मेरे बाॅल
पर बोलदे लिखणा 26 लाईनां‘च हाल।
हिन्दी अनुवाद
चल मन आज शिमला चलें,
पहाडों की रौनक देखें।
बस में जाना या
छुक-छुक गाड़ी करनी।
टेढ़े-मेढ़े मोड़ों से न डरना
सिर खिड़की से बाहर न निकालना
चल मन आज शिमला चलें।
माल रोड के चक्कर काटने
लड़के-लड़कियां सब देखने
भेड़ों की तरह फुदकती हैं लड़कियां
उठा लेती हैं मनों की बोरियां।
बालज़ीस का डोसा खाया
और यदि न खाये हिमानी के भटूरे
तो शिमले की सैर मानेंगे अधूरे।
रिज मैदान पर गांधी का बुत।
लकड़ियों के बैंचों पर बैठकर
खाई मूंगफ़ली खूब।
गोल चक्कर बन गया अब
गुफ़ा, आशियाना रैस्टोरैंट।
लक्कड़ बाज़ार जाना ज़रूर।
लकड़ी की लाठी लेना हज़ूर।
जाखू जायेंगे तो ले जाना लाठी,
चढ़ते-चढ़ते घुटने टूटते
साथ बनती है सहारा,
बंदरों को भगाने में आती काम।
स्कैंडल प्वाईंट पर खड़े लालाजी
कहते हैं एक के साथ एक चलो जी।
मौसम कोई भी हो
करना नहीं कभी भरोसा,
स्वैटर-छाता लेकर चलना,
नहीं तो शीत लेकर हटना।
यादें बहुत हैं मेरे पास
पर कहते हैं 26 पंक्तियों में लिखना है हाल।
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तितली को तितली मिली
तितली को तितली मिली,
मुस्कुराहट खिली।
कुछ गीत गुनगुनाएं,
कुछ हंसे, कुछ मुस्कुराएं,
कहीं फूल खिले,
कहीं शाम हंसाए,
रोशनी की चमक,
रंगों की दमक,
हवाओं की लहक,
फूलों की महक,
मन को रिझाए।
सुन्दर है,
सुहानी है ज़िन्दगी।
बस यूं ही खुशनुमा
बितानी है ज़िन्दगी।
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सुख-दुख तो आने-जाने हैं
धरा पर मधुर-मधुर जीवन की महक का अनुभव करती हूं
पुष्प कहीं भी हों, अपने जीवन को उनसे सुरभित करती हूं
सुख-दुख तो आने-जाने हैं, फिर आशा-निराशा क्यों
कुछ बिगड़ा है तो बनेगा भी, इस भाव को अनुभव करती हूं
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कोरोनामय वातावरण में मानसिकता
एक बात समझ नहीं पा रही हूं। जब से कोरोना या कोविड -19 आया है, पहले की तरह साधारण बुखार, वायरल, गला खराब, खांसी-जुकाम होना बन्द हो गया है क्या? मौसम बदलने पर, बारिश में भीगने पर, सर्दी लग जाने पर, ज़्यादा धूप में घूमने या लू लग जाने पर, ए सी या कूलर की सीधी हवा लग जाने से उक्त समस्याएं हो जाती थीं। अब क्या ये सब बन्द हो गई हैं, सीधा कोरोना ही होता है क्या? आजकल चिकित्सकों की बात से तो ऐसा ही लगता है। घर में किसी को इनमें से कोई समस्या होने पर किसी चिकित्सक को फोन कीजिए कि एक-दो दिन से बुखार है अथवा उक्त सारी समस्याओं में से कोई समस्या है। सीधा दो टूक उत्तर मिलता है कोरोना टैस्ट करवा लीजिए।
नहीं डाक्टर ऐसी बात नहीं है।
डाक्टर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।
नहीं पहले आप कोरोना टैस्ट करवा लीजिए, फिर देखेंगे।
लेकिन डाक्टर, उसमें तो दो दिन लग जायेंगे, बुखार तो तेज़ है।
तो ठीक है ये दो गोली नोट कर लीजिए, 100 बुखार होने तक पहली गोली दे देना दिन में एक बार। 101 से ज़्यादा होने पर पी सी एम दे देना।
मिलते-जुलते उत्तर ही मिलते हैं।
अब मान लीजिए 1 तारीख को बुखार हुआ। हर कोई पहले तो घर में ही रखी पी सी एम या क्रोसीन ले लेता है। दूसरे दिन बुखार न उतरने पर डाक्टर को फोन किया। डाक्टर का उत्तर आपने पढ़ लिया। तीसरे दिन टैस्ट करवाया। पांचवें दिन रिपोर्ट मिली। नैगेटिव।
डाक्टर ने नैगेटिव रिपोर्ट की बात सुनकर कहा, चलो ठीक है, आप बुखार की ये दवाई ले लीजिए।
किन्तु वे पांच दिन कितने भारी थे, उन पांच दिन में बुखार बिगड़कर कोई भी रूप ले लेता है, कोरोना का नहीं। क्या उन पांच दिन के लिए साधारण बुखार की या वायरल की दवाई नहीं दी जा सकती थी, मैं तो डाक्टर नहीं हूं। कोई बतायेगा क्या?
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सबको बहकाते
पुष्प निःस्वार्थ भाव से नित बागों को महकाते
पंछी को देखो नित नये राग हमें मधुर सुनाते
चंदा-सूरज दिग्-दिगन्त रोशन करते हर पल
हम ही क्यों छल-कपट में उलझे सबको बहकाते
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कल डाली पर था आज गुलदान में
कवियों की सोच को न जाने क्या हुआ है, बस फूलों पर मन फिदा हुआ है
किसी के बालों में, किसी के गालों में, दिखता उन्हें एक फूल सजा हुआ है
प्रेम, सौन्दर्य, रस का प्रतीक मानकर हरदम फूलों की चर्चा में लगे हुये हैं
कल डाली पर था, आज गुलदान में, और अब देखो धरा पर पड़ा हुआ है।
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आनन्द उठाने चल रही ज़िन्दगी
रंगों के बीच कदम उठाकर चल रही है ज़िन्दगी।
चांद की मद्धम रोशनी में पल रही है ज़िन्दगी।
धरा और आकाश में भावों का ज्वार उठ रहा,
एकाकीपन का आनन्द उठाने चल रही है ज़िन्दगी।