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आज आपको दिल की सच्ची बात बतानी है
काम का मन नहीं, सुबह से चादर तानी है
पल-पल बदले है सोच, पल-पल बदले भाव
शायद हर जीवन की यही असली कहानी है।
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कहानी टूटे-बिखरे रिश्तों की
कुछ यादें,
कुछ बातें चुभती हैं
शीशे की किरचों-सी।
रिसता है रक्त, धीरे-धीरे।
दाग छोड़ जाता है।
सुना है मैंने
खुरच कर नमक डालने से
खुल जाते हैं ऐसे घाव।
किरचें छिटक जाती हैं।
अलग-से दिखाई देने लगती हैं।
घाव की मरहम-पट्टी को भूलकर,
हम अक्सर उन किरचों को
समेटने की कोशिश करते हैं।
कि अरे !
इस छोटे-से टुकड़े ने
इतने गहरे घाव कर दिये थे,
इतना बहा था रक्त।
इतना सहा था दर्द।
और फिर अनजाने में
फिर चुभ जाती हैं वे किरचें।
और यह कहानी
जीवन भर दोहराते रहते हैं हम।
शायद यह कहानी
किरचों की नहीं,
टूटे-बिखरे रिश्तों की है ,
या फिर किरचों की
या फिर टूटे-बिखरे रिश्तों की ।।।।
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अवसर है अकेलापन अपनी तलाश का
एक सपने में जीती हूं,
अंधेरे में रोशनी ढूंढती हूं।
बहारों की आस में,
कुछ पुष्प लिए हाथ में,
दिन-रात को भूलती हूं।
काल-चक्र घूमता है,
मुझसे कुछ पूछता है,
मैं कहां समझ पाती हूं।
कुछ पाने की आस में
बढ़ती जाती हूं।
गगन-धरा पुकारते हैं,
कहते हैं
चलते जाना, चलते जाना
जीवन-गति कभी ठहर न पाये,
चंदा-सूरज से सीख लेना
तारों-सा टिमटिमाना,
अवसर है अकेलापन
अपनी तलाश का ,
अपने को पहचानने का,
अपने-आप में
अपने लिए जीने का।
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जीवन यूं ही करवट लेता है
गुब्बारों में अरमानों की हवा भरी है कुछ खाली बन्द पड़े हैं
कुछ में रंग-बिरंगी आशाएं हैं, कुछ में रंगीन जल भरे हैं
कब हवा का रूख बदलेगा, हाथों से छूटेंगे फूटेंगे, पिचकेंगे
जीवन यूं ही करवट लेता है, ये क्यों न हम समझ सके हैं
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शायद प्यार से मन मिला नहीं था
यूं तो उनसे कोई गिला नहीं था
यादों का कोई सिला नहीं था
कभी-कभी मिल लेते थे यूं ही
शायद प्यार से मन मिला नहीं था
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कहां जानती है ज़िन्दगी
कदम-दर-कदम
बढ़ती है ज़िन्दगी।
कभी आकाश
तो कभी पाताल
नापती है ज़िन्दगी।
पंछी-सा
उड़ान भरता है कभी मन,
तो कभी
रंगीनियों में खेलता है।
कब उठेंगे बवंडर
और कब फंसेंगे भंवर में,
यह बात कहां जानती है ज़िन्दगी।
यूं तो
साहस बहुत रखते हैं
आकाश छूने का
किन्तु नहीं जानते
कब धरा पर
ला बिठा देगी ज़िन्दगी।
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सपनों में जीने लगते हैं
लक्ष्य जितना सरल दिखता है
राहें
उतनी ही कठिन होने लगती हैं।
हमें आदत-सी हो जाती है
सब कुछ को
बस यूं ही ले लेने की
अभ्यास और प्रयास
की आदत छोड़ बैठते हैं
सपनों में जीने लगते हैं
लगता है
बस
हाथ बढ़ाएंगे
और चांद पकड़ लेंगे
अपने में खोये
ग्रहण और अमावस को
समझ नहीं पाते हम
सपनों में जीते
चांद को ही दोष देते हैं
सही राह नहीं पकड़ पाते हम।
-
लक्ष्य कठिन हो तो
राहें
आप ही सरल हो जाती हैं
क्योंकि तब हम समझ पाते हैं
चांद की दूरियां
और ग्रहण-अमावस का भाव
जीवन में।
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अन्तर्मन की आग जला ले
अन्तर्मन की आग जला ले
उन लपटों को बाहर दिखला दे।
रोना-धोना बन्द कर अब
क्यों जिसका जी चाहे कर ले तब।
सबको अपना संसार दिखा ले
अपनी दुनिया आप बसा ले।
ठोक-बजाकर जीना सीख
कर ले अपने मन की रीत।
कोई नहीं तुझे जलाता
तेरी निर्बलता तुझ पर हावी
अपनी रीत आप बना ले।
पाखण्डों की बीन बजा देे
मनचाही तू रीत कर ले।
इसकी-उसकी सुनना बन्द कर
बेचारगी का ढोंग बन्द कर।
दया-दया की मांग मतकर
बेबस बन कर जीना बन्द कर।
अपने मन के गीत बजा ले।
घुटते-घुटते रोना बन्द कर
रो-रोकर दिखलाना बन्द कर
इसकी-उसकी सुनना बन्द कर।
अपने मन से जीना सीख।
अन्तर्मन की आग जला ले।
उन लपटों को बाहर दिखला दे।
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इतिहास हमारा
इतिहास हमारा स्वर्णिम था, या था समस्याओं का काल
किसने देखा, किसने जाना, बस पढ़ा-सुना कुछ हाल
गल्प कथाओं से भरा, सत्य है या कल्पना कौन कहे
यूँ ही लड़ते-फिरते हैं, निकाल रहे बस बाल की खाल
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एक मधुर संदेश
प्रतिदिन प्रात में सूर्य का आगमन एक मधुर संदेश देता है
तोड़े न कभी क्रम अपना, मार्ग सुगम नहीं दिखाई देता है
कभी बदली, आंधी, कभी ग्रहण भी नहीं रोक पाते राहों को
मंज़िल कभी दूर नहीं होती, बस लगे रहो, यही संदेश देता है
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पुरानी कथाओं से सीख नहीं लेते
पता नहीं
कब हम इन
कथा-कहानियों से
बाहर निकलेंगे।
पता नहीं
कब हम वर्तमान की
कड़वी सच्चाईयों से
अपना नाता जोड़ेंगे।
पुरानी कथा-कहानियों को
चबा-चबाकर,
चबा-चबाकर खाते हैं,
और आज की समस्याओं से
नाता तोड़ जाते हैं।
प्रभु से प्रेम की धार बहाईये,
किन्तु उनके मोह के साथ
मानवता का नाता भी जोड़िए।
पुस्तकों में दबी,
कहानियों को ढूंढ लेते हैं,
क्यों उनके बल पर
जाति और गरीबी की
बात उठाते हैं।
राम हों या कृष्ण
सबको पूजिए,
पर उनके नाम से आज
बेमतलब की बातें मत जोड़िए।
उनकी कहानियों से
सीख नहीं लेते,
किसी के लिए कुछ
नया नहीं सोचते,
बस, चबा-चबाकर,
चबा-चबाकर,
आज की समस्याओं से
मुंह मोड़ जाते हैं।