मन का इन्द्रधनुष

कौन समझ पाया है

मन के रंगों को

मन की तरंगों को।

अपना ही मन

अपने ही रंगों को

संवारता है

बिखेरता है

उलझता है

और कभी उलझाता है।

मन का इन्द्रधनुष

रंगों की आभा को

निरखता है,

निखारता है,

तूलिका से

किसी पटल पर उकेरता है।

एक रूप देने का प्रयास

करती हूं

भावों को, विचारों को।

 

मन विभोर होता है।

आनन्द लेती हूं

रंगों से मन सराबोर होता है।