औरत का गुणगान करें

चलो,

आज फिर

औरत का गुणगान करें।

चूल्हे पर

पकती रोटी का

रसपान करें।

कितनी सरल-सीधी

संस्कारी है ये औरत

घूँघट काढ़े बैठी है

आधुनिकता से परे

शील की चादर ओढ़े बैठी है।

लकड़ी का धुआँ

आँखों में चुभता है

मन में घुटता है।

पर तुमको

बहुत भाता है

संसार भर में

मेरी मासूमियत के

गीत गाता है।

आधुनिकता में जीता है

आधुनिकता का खाता है

पर समझ नहीं पाती

कि तुमको

मेरा यही रूप क्यों सुहाता है।