Share Me
कहते हैं
दुनिया
दो दिन का मेला,
कहाँ लगा
कबसे लगा,
मिला नहीं।
-
वैसे भी
69 वर्ष हो गये
ये दो दिन
बीत ही नहीं रहे।
Share Me
Write a comment
More Articles
मेरा प्रवचन है
इस छोटी सी उम्र में ही
जान ले ली है मेरी।
बड़ी बड़ी बातें सिखाते हैं
जीवन की राहें बताते हैं
मुझे क्या बनना है जीवन में
सब अपनी-अपनी राय दे जाते हैं।
और न जाने क्या क्या बताते-समझाते हैं।
इस छोटी सी उम्र में ही
एक नियमावली है मेरे लिए
उठने , बैठने, सोने, खाने-पीने की
पढ़ने और अनेक कलाओं में
पारंगत होने की।
अरे !
ज़रा मेरी उम्र तो देखो
मेरा कद, मेरा वजूद तो देखो
मेरा मजमून तो देखो।
किसे किसे समझाउं
मेरे खेलने खाने के दिन हैं।
देख रहे हैं न आप
अभी से मेरे सिर के बाल उड़ गये
आंखों पर चश्मा चढ़ गया।
तो
मैंने भी अपना मार्ग चुन लिया है।
पोथी उठा ली है
धूनी रमा ली है
शाम पांच बजे
मेरा प्रवचन है
आप सब निमंत्रित हैं।
Share Me
यह जिजीविषा की विवशता है
यह जिजीविषा की विवशता है
या त्याग-तपस्या, ज्ञान की सीढ़ी
जीवन से विरक्तता है
अथवा जीवित रहने के लिए
दुर्भाग्य की सीढ़ी।
ज्ञान-ध्यान, धर्म, साधना संस्कृति,
साधना का मार्ग है
अथवा ढकोसलों, अज्ञान, अंधविश्वासों को
व्यापती एक पाखंड की पीढ़ी।
या एकाकी जीवन की
विडम्बानाओं को झेलते
भिक्षा-वृत्ति के दंश से आहत
एक निरूपाय पीढ़ी।
लाखों-करोड़ों की मूर्तियां बनाने की जगह
इनके लिए एक रैन-बसेरा बनवा दें
हर मन्दिर के किसी कोने में
इनके लिए भी एक आसन लगवा दें।
कोई न कोई काम तो यह भी कर ही देंगे
वहां कोई काम इनको भी दिलवा दें,
इस आयु में एक सम्मानजनक जीवन जी लें
बस इतनी सी एक आस दिलवा दें।
Share Me
हम नहीं लकीर के फ़कीर
हमें बचपन से ही
घुट्टी में पिलाई जाती हैं
कुछ बातें,
उन पर
सच-झूठ के मायने नहीं होते।
मायने होते हैं
तो बस इतने
कि बड़े-बुजुर्ग कह गये हैं
तो गलत तो हो ही नहीं सकता।
उनका अनुभूत सत्य रहा होगा
तभी तो सदियों से
कुछ मान्यताएं हैं हमारे जीवन में,
जिनका विरोध करना
संस्कृति-संस्कारों का अपमान
परम्पराओं का उपहास,
और बड़े-बुज़ुर्गों का अपमान।
आज की शिक्षित पीढ़ी
नकारती है इन परम्पराओं-आस्थाओं को।
कहती है
हम नहीं लकीर के फ़कीर।
किन्तु
नया कम्प्यूटर लेने पर
उस पर पहले तिलक करती है।
नये आफ़िस के बाहर
नींबू-मिर्च लटकाती है,
नया काम शुरु करने से पहले
उन पण्डित जी से मुहूर्त निकलवाती है
जो संस्कृत-पोथी पढ़ना भूले बैठे हैं,
फिर नारियल फोड़ती है
कार के सामने।
पूजा-पाठ अनिवार्य है,
नये घर में हवन तो करना ही होगा
चाहे सामग्री मिले या न मिले।
बिल्ली रास्ता काट जाये
तो राह बदल लेते हैं
और छींक आने पर
लौट जाते हैं
चाहे गाड़ी छूटे या नौकरी।
हाथों में ग्रहों की चार अंगूठियां,
गले में चांदी
और कलाई में काला-लाल धागा
नज़र न लगे किसी की।
लेकिन हम नहीं लकीर के फ़कीर।
ये तो हमारी परम्पराएं, संस्कृति है
और मान रखना है हमें इन सबका।
Share Me
प्रकृति का सौन्दर्य
फूलों पर मंडराती तितली को मदमाते देखा
भंवरे को फूलों से गुपचुप पराग चुराते देखा
सूरज की गुनगुनी धूप, चंदा से चांदनी आई
हमने गिरगिट को कभी न रंग बदलते देखा
Share Me
जल की बूंदों का आचमन कर लें
सावन की काली घटाएं मन को उजला कर जाती हैं
सावन की झड़ी मन में रस-राग-रंग भर जाती है
पत्तों से झरते जल की बूंदों का आचमन कर लें
सावन की नम हवाएं परायों को अपना कर जाती हैं
Share Me
जागरण का आंखों देखा हाल
चलिए,
आज आपको
मेरे परिचित के घर हुए
जागरण का
आंखों देखा हाल सुनाती हूं।
मैं मूढ़
मुझे देर से समझ आया
कि वह जागरण ही था।
भारी भीड़ थी,
कनातें सजी थीं,
दरियां बिछी थीं।
लोगों की आवाजाही लगी थी।
चाय, ठण्डाई का
दौर चल रहा था।
पीछे भोजन का पंडाल
सज रहा था।
लोग आनन्द ले रहे थे
लेकिन मां की प्रतीक्षा कर रहे थे।
इतने में ही एक ट्रक में
चार लोग आये
बक्सों में कुछ मूर्तियां लाये।
पहले कुछ टूटे-फ़ूटे
फ़ट्टे सजाये।
फिर मूर्तियों को जोड़ा।
आभूषण पहनाये, तिलक लगाये,
भक्त भाव-विभोर
मां के चरणों में नत नज़र आये।
जय-जयकारों से पण्डाल गूंज उठा।
फ़िल्मी धुनों के भक्ति गीतों पर
लोग झूमने लगे।
गायकों की टोली
गीत गा रही थी
भक्तगण झूम-झूमकर
भोजन का आनन्द उठा रहे थे।
भोजन सिमटने लगा
भीड़ छंटने लगी।
भक्त तन्द्रा में जाने लगे।
गायकों का स्वर डूबने लगा।
प्रात होने लगी
कनात लेने वाले
दरियां उठाने वाले
और मूर्तियां लाने वालों की
भीड़ रह गई।
पण्डित जी ने भोग लगाया।
मैंने भी प्रसाद खाया।
ट्रक चले गये
और जगराता सम्पन्न हुआ।
जय मां ।
Share Me
सुना है कोई भाग्य विधाता है
सुना है
कोई भाग्य विधाता है
जो सब जानता है।
हमारी होनी-अनहोनी
सब वही लिखता है ,
हम तो बस
उसके हाथ की कठपुतली हैं
जब जैसा चाहे वैसा नचाता है।
और यह भी सुना है
कि लेन-देन भी सब
इसी ऊपर वाले के हाथ में है।
जो चाहेगा वह, वही तुम्हें देगा।
बस आस लगाये रखना।
हाथ फैलाये रखना।
कटोरा उठाये रखना।
मुंह बाये रखना।
लेकिन मिलेगा तुम्हें वही
जो तुम्हारे भाग्य में होगा।
और यह भी सुना है
कर्म किये जा,
फल की चिन्ता मत कर।
ऊपर वाला सब देगा
जो तुम्हारे भाग्य में लिखा होगा।
और भाग्य उसके हाथ में है
जब चाहे बदल भी सकता है।
बस ध्यान लगाये रखना।
और यह भी सुना है
कि जो अपनी सहायता आप करता है
उसका भाग्य ऊपर वाला बनाता है।
इसलिए अपनी भी कमर कस कर रखना
उसके ही भरोसे मत बैठे रहना।
और यह भी सुना है
हाथ धोकर
इस ऊपर वाले के पीछे लगे रहना।
तन मन धन सब न्योछावर करना।
मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा कुछ न छोड़ना।
नाक कान आंख मुंह
सब उसके द्वार पर रगड़ना।
और फिर कुछ बचे
तो अपने लिए जी लेना
यदि भाग्य में होगा तो।
आपको नहीं लगता
हमने कुछ ज़्यादा ही सुन लिया है।
अरे यार !
अपनी मस्ती में जिये जा।
जो सामने आये अपना कर्म किये जा।
जो मिलना है मिले
और जो नहीं मिलना है न मिले
बस हंस बोलकर आनन्द में जिये जा।
और मुंह ढककर अच्छी नींद लिये जा।
Share Me
जीवन संघर्ष
प्रदर्शन नहीं, जीवन संघर्ष की विवशता है यह
रोज़ी-रोटी और परवरिश का दायित्व है यह
धूप की माया हो, या हो आँधी-बारिश, शिशिर
कठोर धरा पर निडर पग बढ़ाना, जीवन है यह
Share Me
धन्यवाद देते रहना हमें Keep Thanking
आकाश को थाम कर खड़े हैं नहीं तो न जाने कब का गिर गया होता
पग हैं धरा पर अड़ाये, नहीं तो न जाने कब का भूकम्प आ गया होता
धन्यवाद देते रहना हमें, बहुत ध्यान रखते हैं हम आप सबका सदैव ही
पानी पीते हैं, नहा-धो लेते हैं नहीं तो न जाने कब का सुनामी आ गया होता।
Share Me
पत्थरों में भगवान ढूंढते हैं
इंसान बनते नहीं,
पत्थर गढ़ते हैं,
भाव संवरते नहीं
पूजा करते हैं,
इंसानियत निभाते नहीं
निर्माण की बात करते हैं।
सिर ढकने को
छत दे सकते नहीं
आकाश छूती
मूर्तियों की बात करते हैं।
पत्थरों में भगवान
ढूंढते हैं
अपने भीतर की इंसानियत
को मारते हैं।
* * * *
अपने भीतर
एक विध्वंस करके देख।
कुछ पुराना तोड़
कुछ नया बनाकर देख।
इंसानियत को
इंसानियत से जोड़कर देख।
पतझड़ में सावन की आस कर।
बादलों में
सतरंगी आभा की तलाश कर।
झड़ते पत्तों में
नवीन पंखुरियों की आस देख।
कुछ आप बदल
कुछ दूसरों से आस देख।
बस एक बार
अपने भीतर की कुण्ठाओं,
वर्जनाओं, मृत मान्यताओं को
तोड़ दे
समय की पुकार सुन
अपने को बदलने का साहस गुन।