न कुछ बदला है न बदलेगा

कांटा डाले देखो बैठे नेताजी

वोट का तोल लगाने बैठे नेताजी

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नेताजी के रंग बदल गये

खाने-पीने के ढंग बदल गये

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नोट दिखाकर ललचा रहे हैं

वोट हमसे मांग रहे हैं।

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इसको ऐसे समझो जी,

नोटों का चारा बनता

वोटों का झांसा डलता

मछली को दाना डलता

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पहले मछली को दाना डालेंगे

उससे अपने काम निकलवा लेंगे

होगी  मछली ज्यों ही मोटी

होगी किस्मत उसकी  खोटी

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दाना-पानी सब बन्द होगा

नदिया का पानी सूखेगा

फिर कांटे से इनको बाहर लायेंगे

काट-काटकर खायेंगे

प्रीत-भोज में मिलते हैं

पांच साल किसने देखे

आना-जाना लगा रहेगा

न कुछ बदला है, न बदलेगा।