Share Me
आज तो कोई बात ही नहीं है बताने के लिए
बस यूँ ही लिख रहे हैं कुछ जताने के लिए
दर्दे-दिल की बात तो अब हम करते ही नहीं
वे झट से आँसू बहाने लगते हैं दिखाने के लिए।
Share Me
Write a comment
More Articles
मन में बस सम्बल रखना
चिड़िया के बच्चे सी
उतरी थी मेरे आंगन में।
दुबकी, सहमी सी रहती थी
मेरे आंचल में।
चिड़िया सी चीं-चीं करती
दिन भर
घर-भर में रौनक भरती।
फिर कब पंख उगे
उड़ना सिखलाया तुझको।
धीरे धीरे भरना पग
समझाया तुझको।
दुर्गम हैं राहें,
तपती धरती है,
कंकड़ पत्थर बिखरे हैं,
कदम सम्हलकर रखना
बतलाया तुझको।
हाथ छोड़कर तेरा
पीछे हटती हूं।
अब तुझको
अपने ही दम पर
है आगे बढ़ना।
हिम्मत रखना।
डरना मत ।
जब मन में कुछ भ्रम हो
तो आंखें बन्द कर
करना याद मुझे।
कहीं नहीं जाती हूं
बस तेरे पीछे आती हूं।
मन में बस इतना ही
सम्बल रखना।
Share Me
खण्डित दर्पण सच बोलता है
कहते हैं
खण्डित दर्पण में
चेहरा देखना अपशकुन होता है।
शायद इसलिए
कि इस खण्डित दर्पण के
टुकड़ों में
हमें अपने
सारे असली चेहरे
दिखाई देने लगते हैं
और हम समझ नहीं पाते
कहां जाकर
अपना यह चेहरा छुपायें।
*-*-**-*-
एक बात और
जब दर्पण टूटता है
तो अक्सर खरोंच भी
पड़ जाया करती है
फिर चेहरे नहीं दिखते
खरोंचे सालती हैं जीवन-भर।
*-*-*-*-*-
एक बात और
कहते हैं दर्पण सच बोलता है
पर मेरी मानों
तो दर्पण पर
भरोसा मत करना कभी
उल्टे को सीधा
और सीधे को उल्टा दिखाता है
Share Me
प्रकृति के प्रपंच
प्रकृति भी न जाने कहां-कहां क्या-क्या प्रपंच रचा करती है
पत्थरों को जलधार से तराश कर दिल बना दिया करती है
कितना भी सजा संवार लो इस दिल को रंगीनियों से तुम
बिगड़ेगा जब मिज़ाज उसका, पल में सब मिटा दिया करती है
Share Me
सम्बन्धों की डोर
विशाल वृक्षों की जड़ों से जब मिट्टी दरकने लगती है।
जिन्दगी की सांसें भी तब कुछ यूं ही रिसने लगती हैं।
विशाल वृक्षों की छाया तले ही पनपने हैं छोटे पेड़ पौधे,
बड़ों की छत्रछाया के बिना सम्बन्धों की डोर टूटने लगती है।
Share Me
यूं ही पार उतरना है
नैया का क्या करना है, अब तो यूं ही पार उतरना है
कुछ डूबेंगे, कुछ तैरेंगे, सब अपनी हिम्मत से करना है
नहीं खड़ा है अब खेवट कोई, नैया पार लगाने को
जान लिया है सब दिया-लिया इस जीवन में ही भरना है
Share Me
ये चांद है अदाओं का
चांद
यूं ही तो नहीं
चमकता है आसमान में।
उसकी भी अपनी अदाएं हैं।
किसी को तो चांद सी
सूरत दे देता है
और किसी के जीवन में
चांद से दाग
और किसी किसी के लिए तो
कभी चांद निकलता ही नहीं
बस
अमावस्या ही बनी रहती है जीवन भर।
बस एक भ्रम पालकर
जिन्दगी जी लेते हैं
कि चांद है उनकी जिन्दगी में
क्योंकि जब
चांद आसमान में है
तो कुछ तो उनकी
जिन्दगी में भी होगा ही।
और कहीं कहीं तो कभी
चांद डूबता ही नहीं,
बस पूर्णिमा ही बनी रहती है।
इसलिए इस भ्रम में
या इस गणना में मत रहना
कि इतने दिन बाद
चौथ का चांद
आ जायेगा जीवन में,
या अमावस्या या पूर्णिमा,
उसकी मर्ज़ी आये या न आये
Share Me
किस युग में जी रहे हो तुम
मेरा रूप तुमने रचा,
सौन्दर्य, श्रृंगार
सब तुमने ही तो दिया।
मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व
मेरे गुण, या मेरी चमत्कारिता
सब तुम्हारी ही तो देन है।
मुझे तो ठीक से स्मरण भी नहीं
किस युग में, कब-कब
अवतरित हुआ था मैं।
क्यों आया था मैं।
क्या रचा था मैंने इतिहास।
कौन सी कथा, कौन सा युद्ध
और कौन सी लीला।
हां, इतना अवश्य स्मरण है
कि मैंने रचा था एक युग
किन्तु समाप्त भी किया था एक युग।
तब से अब तक
हज़ारों-लाखों वर्ष बीत गये।
चकित हूं, यह देखकर
कि तुम अभी भी
उसी युग में जी रहे हो।
वही कल्पनाएं, कपोल-कथाएं
वही माटी, वही बाल-गोपाल
राधा और गोपियां, यशोदा और माखन,
लीला और रास-लीलाएं।
सोचा कभी तुमने
मैंने जब भी
पुन:-पुन: अवतार लिया है
एक नये रूप में, एक नये भाव में
एक नये अर्थ में लिया है।
काल के साथ बदला हूं मैं।
हर बार नये रूप में, नये भाव में
या तुम्हारे शब्दों में कहूं तो
युगानुरूप
नये अवतार में ढाला है मैंने
अपने-आपको।
किन्तु, तुम
आज भी, वहीं के वहीं खड़े हो।
तो इतना जान लो
कि तुम
मेरी आराधना तो करते हो
किन्तु मेरे साथ नहीं हो।
Share Me
शक्ल हमारी अच्छी है
शक्ल हमारी अच्छी है, बस अपनी नज़र बदल लो तुम।
अक्ल हमारी अच्छी है, बस अपनी समझ बदल लो तुम।
जानते हो, पर न जाने क्यों न मानते हो, हम अच्छे हैं,
मित्रता हमारी अच्छी है, बस अपनी अकड़ बदल लो तुम।
Share Me
फागुन आया
बादलों के बीच से
चाँद झांकने लगा
हवाएँ मुखरित हुईं
रवि-किरणों के
आलोक में
प्रकृति गुनगुनाई
मन में
जैसे तान छिड़ी,
लो फागुन आया।
Share Me
अपनी कहानियाँ आप रचते हैं
पुस्तकों में लिखते-लिखते
भाव साकार होने लगे।
शब्द आकार लेने लगे।
मन के भाव नर्तन करने लगे।
आशाओं के अश्व
दौड़ने लगे।
सही-गलत परखने लगे।
कल्पना की आकृतियां
सजीव होने लगीं,
लेखन से विलग
अपनी बात कहने लगीं।
पूछने लगीं, जांचने लगीं,
सत्य-असत्य परखने लगीं।
अंधेरे से रोशनियों में
चलने लगीं।
हाथ थाम आगे बढ़ने लगीं।
चल, इस ठहरी, सहमी
दुनिया से अलग चलते हैं
बनी-बनाई, अजनबी
कहानियों से बाहर निकलते हैं,
अपनी कहानियाँ आप रचते हैं।