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पुस्तकों पर सिर रखकर नींद बहुत अच्छी आती है
सपनों में परीक्षा देती, परिणाम की चिन्ता जाती है
सब कहते हैं पढ़-पढ़ ले, जीवन में कुछ अच्छा कर ले
कुछ भी कर लें, बन लें, तो भी किसी के मन न भाती है
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आस लिए जीती हूँ
सपनों में जीती हूँ
सपनों में मरती हूँ
सपनों में उड़ती हूँ
ऐसे ही जीती हूँ।
धरा पर सपने बोती हूँ
गगन में छूती हूँ ।
मन में चाँद-तारे बुनती हूँ।
बादलों-से उड़ जाते हैं,
हवाएँ बहकाती हैं
सहम जाता है मन
पंछी-सा,
पंख कतरे जाते हैं
फिर भी उड़ती हूँ।
लौट धरा पर आती हूँ,
पर गगन की
आस लिए जीती हूँ।
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गगन
गगन
बादलों के आंचल में
चांद को समेटकर
छुपा-छुपाई खेलता रहा।
और हम
घबराये,
बौखलाये-से
ढूंढ रहे।
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मन आनन्दित होता है
लेन-देन में क्या बुराई
जितना चाहो देना भाई
मन आनन्दित होता है
खाकर पराई दूध-मलाई
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चंचल हैं सागर की लहरें
चंचल हैं सागर की लहरें।
कुछ कहना चाहती हैं।
किनारे तक आती हैं,
किन्तु नहीं मिलता किनारा,
लौट जाती हैं,
अपने-आपमें,
कभी बिखर कर,
कभी सिमट कर।
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प्रेम, सौहार्द,स्नेह के निर्झर बहाकर देख
किसी दूसरे की व्यथा को अपना बनाकर देख
औरों के लिए सुख का सपना सजाकर तो देख
अपने लिए,अपनों के लिए तो जीते हैं सभी यहां
मैत्री, प्रेम, सौहार्द,स्नेह के निर्झर बहाकर देख
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द्वार पर सांकल लगने लगी है
उत्सवों की चहल-पहल अब भीड़ लगने लगी है
अपनों की आहट अब गमगीन करने लगी है
हवाओं को घोटकर बैठते हैं सिकुड़कर हम
कोई हमें बुला न ले, द्वार पर सांकल लगने लगी है
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कितने सबक देती है ज़िन्दगी
भाग-दौड़ में लगी है ज़िन्दगी।
खेल-खेल में रमी है ज़िन्दगी।
धूल-मिट्टी में आनन्द देती
मज़े-मजे़ से बीतती है ज़िन्दगी।
तू हाथ बढ़ा, मैं हाथ थामूँ,
धक्का-मुक्की, उठन-उठाई
नाम तेरा यही है ज़िन्दगी।
आगे-पीछे देखकर चलना
बायें-दायें, सीधे-सीधे
या पलट-पलटकर,
सम्हल-सम्हलकर।
तब भी न जाने
कितने सबक देती है ज़िन्दगी।
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यादों के उजाले नहीं भाते
यादों के उजाले
नहीं भाते।
घिर गये हैं
आज के अंधेरों में।
गहराती हैं रातें।
बिखरती हैं यादें।
सिहरती हैं सांसें
नहीं सुननी पुरानी बातें।
बिखरते हैं एहसास।
कहता है मन
नहीं चाहिए यादें।
बस आज में ही जी लें।
अच्छा है या बुरा
बस आज ही में जी लें।
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ज़िन्दगी कहीं सस्ती तो नहीं
बहुत कही जाती है एक बात
कि जब
रिश्तों में गांठें पड़ती हैं,
नहीं आसान होता
उन्हें खोलना, सुलझाना।
कुछ न कुछ निशान तो
छोड़ ही जाती हैं।
लेकिन सच कहूं
मुझे अक्सर लगता है,
जीवन में
कुछ बातों में
गांठ बांधना भी
ज़रूरी होता है।
टूटी डोर को भी
हम यूं ही नहीं जाने देते
गांठे मार-मारकर
सम्हालते हैं,
जब तक सम्हल सके।
ज़िन्दगी कहीं
उससे सस्ती तो नहीं,
फिर क्यों नहीं कोशिश करते,
यहां भी कभी-कभार,
या बार-बार।
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जीवन में पतंग-सा भाव ला
जीवन में पतंग-सा भाव ला।
आकाश छूने की कोशिश कर।
पांव धरा पर रख।
सूरज को बांध
पतंग की डोरी में।
उंची उड़ान भर।
रंगों-रंगीनियों से खेल।
मन छोटा न कर।
कटने-टूटने से न डर।
एक दिन
टूटना तो सभी को है।
बस हिम्मत रख।
आकाश छू ले एक बार।
फिर टूटने का,
लौटकर धरा पर
उतरने का दुख नहीं सालता।