असली-नकली की पहचान कहाँ

पीतल में सोने से ज़्यादा चमक आने लगी है

सत्य पर छल-कपट की परत चढ़ने लगी है

असली-नकली की पहचान कहाँ रह गई अब

बस जोड़-तोड़ से अब ज़िन्दगी चलने लगी है।