जीवन के नवीन रंग

प्रकृति

नित नये कलेवर में

अवतरित होती है

रोज़ बदलती है रंग।

कभी धूप

उदास सी खिलती है

कभी दमकती,

कभी बहकती-सी,

बादलों संग

लुका-छिपी खेलती।

बादल

अपने रंगों में मग्न

कभी गहरे कालिमा लिए,

कभी झक श्वेत,

आंखें चुंधिया जाते हैं।

और जब बरसते हैं

तो आंखों के मोती-से

मन भिगो-भिगो जाते हैं

कभी सतरंगी

ले आते हैं इन्द्रधनुष

नित नये रंगों संग

मन बहक-बहक जाता है।

प्रात में जब सूर्य-रश्मियां

नयनों में उतरती हैं

पंछियों का कलरव

नित नव संगीत रचता है,

तब हर दिन

जीवन नया-सा लगता है।