नाम लिखा है तुम्हारा

रोज़ एक फूल छुपाती थी किताबों में

तुम्हारे चेहरे का अक्स बनाती थी किताबों में

दिल की बात बताती थी किताबों में

फिर एक दिन किताब पुरानी हो गई

पन्ने खुलने लगे, फूल झरने लगे

सूखे फूलों को समेटा, पत्ती पत्ती को सहेजा

कोई देख न ले

इसलिए बंद मुठ्ठी में सहेजा

पर मुठ्ठी की दरारों से, चाहत झरने लगी

फूल फिर रूप लेने लगे,

रंग फिर बहकने लगे

नाम तुम्हारा लिखने लगे

दिल में बाग खिलने लगे

उपहार  भेजती हूं तुम्हें

तुम्हारा ही दिल

नाम लिखा है तुम्हारा

फूलों में, कलियों में

इन उलझी लड़ियों में

सलमे सितारों में

तारों में , हारों में ।।।।।।