मेरी  सोच

पता नहीं, शायद

मेरी ही सोच कुछ अलग है

इस तरह के चित्र

मुझे हैरान करते हैं

परेशान करते हैं।

कल्पनाओं के संसार में

मैं जी नहीं पाती

और वास्तविकता से

मुॅंह मोड़ कर नहीं जाती।

ऐसे चित्र जब

बार-बार आॅंखों के सामने आते हैं

तो मन मसोस कर रह जाते हैं।

आज कहाॅं पाई जाती है ऐसी नारी

कैसे लिख लेते हैं हम

इन चित्रों को देखकर

बिहारी-पद्मावत-सी शायरी।

मेरे मन में नहीं आते

प्यार-मुहब्बत के विचार

देखकर इन चित्रों का

विचित्र श्रृंगार।

कौन धारण करता है

आजकल ऐसे वस्त्र

और ऐसा हार-श्रृंगार

मानों किसी फ़ोटो-शूट के लिए

जा रही यह नारी,

अथवा है किसी कलाकार की

अनोखी चित्रकारी,

और उसकी ऐसी मति-मंद

अकल्पनीय सोच 

मेरे चिन्तन को,

मुझे बना देती है बेचारी।

ऐसे घट तो आजकल

संग्रहालयों में पाये जाते हैं

और जो वास्तव में कुंओं से

जल भरकर लाते हैं

उनके हाल देखकर

आंखों में आंसू जाते हैं।