हमारा बायोडेटा

हम कविता लिखते हैं।
कविता को गज़ल, गज़ल को गीत, गीत को नवगीत, नवगीत को मुक्त छन्द, मुक्त छन्द को मुक्तक,

मुक्तक को चतुष्पदी बनाना जानते हैं और  ज़रूरत पड़े तो इन सब को गद्य की सभी विधाओं में भी

परिवर्तित करना जानते हैं। 
जैसे कृष्ण ने गीता में लिखा है कि वे ही सब कुछ हैं, वैसे ही मैं ही लेखक हूँ ,

मैं ही कवि, गीतकार, गज़लकार, साहित्यकार, गद्य पद्य की रचयिता,

कहानी लेखक, प्रकाशक , मुद्रक, विक्रेता, क्रेता, आलोचक,

समीक्षक भी मैं ही हूँ ,मैं ही संचालक हूँ , मैं ही प्रशासक हूँ ।
अहं सर्वत्र रचयिते