मेरी प्रार्थनाएं

मैं नहीं जानती

प्रार्थनाएं कैसे करते हैं

क्यों करते हैं,

और किसके सामने करते हैं।

मैं तो यह भी नहीं जानती

कि प्रार्थनाएं करने से

क्या मिल पाता है

और क्या मांगना चाहिए।

सूरज को देखती हूं।

चांद को निरखती हूं।

बाहर निकलती हूं

तो प्रकृति से मिलती हूं।

पत्तों-फूलों को छूकर

कुछ एहसास

जोड़ती हूं।

गगन को आंखों में

बसाती हूं

धरा से नेह पाती हूं।

लौटकर बच्चों के माथे पर

स्नेह-भाव अंकित करती हूं,

वे मुझे गले से लगा लेते हैं

इस तरह मैं

ज़िन्दगी से जुड़ जाती हूं।

मेरी प्रार्थनाएं

पूरी हो जाती हैं।