मेरी यादों का सागर

कभी चखा तो नहीं

 किन्तु सब कहते हैं

सागर का जल खारा हुआ करता है।

किन्तु मेरी यादों का सागर

तो बहुत मीठा हुआ करता था।

ऐसा क्या हुआ

कि अचानक ही

मेरी यादों का सागर

खारा हो गया,

भावों का सागर मानों

नाकारा हो गया।

तलहट उथली हो गई

नदियों के साथ आया अवशिष्ट

तन-मन में समा गया।

हवाओं के बवंडर

जब जल में उठते हैं

तब उत्ताल तरंगे बनाते हैं।

चांद को देखकर

कुलांचे भरता है

सागर का जल, मदमस्त।

किन्तु कब बदल जाते हैं उसके भाव

समझ नहीं पाते हम।

सागर के किनारे तो नहीं होते

पर पता नहीं क्यों

सब कहते हैं

सागर ने किनारे तोड़ दिये।

और जब किनारे टूटते हैं

तब बहुत कुछ छूट जाता है

और अनचाहा

साथ चला जाता है।