आज मौसम मिला

आज मौसम मिला।

मैंने पूछा

आजकल

ये क्या रंग दिखा रहे हो।

कौन से कैलेण्डर पर

अपना रूप बना रहे हो।

अप्रैल में अक्तूबर,

और मई में

अगस्त के दर्शन

करवा रहे हो।

मौसम

मासूमियत से बोला

आजकल

इंसानों की बस्ती में

ज़्यादा रहने लगा था।

माह और तारीखों पर

ध्यान नहीं लगा था।

उनके मन को पढ़ता था

और वैसे ही मौसम रचने लगा था।

अपने और परायों में

भेद समझने में लगा था।

कौन किसका कब हुआ

यह परखने में लगा था।

कब कैसे पल्टी मारी जाती है,

किसे क्यों

साथ लेकर चलना है

और किसे पटखनी मारी जानी है

बस यही समझने में लगा था।

गर्मी, सर्दी, बरसात

तो आते-जाते रहते हैं

मैं तो तुम्हारे भीतर के

पल-पल बदलते मौसम को

समझने में लगा था।

.

इतनी जल्दी घबरा गये।

तुमसे ही तो सीख रहा हूँ।

पल में तोला,पल में माशा

इधर पंसेरी उधर तमाशा।

अभी तो शुरुआत है प्यारे

आगे-आगे देखिए होता है क्या!!!