यादें: शिमला की बारिश की
न जाने वे कैसे लोग हैं
जो बारिश की
सौंधी खुशबू से
मदहोश हो जाते हैं
प्रेम-प्यार के
किस्सों में खो जाते हैं।
विरह और श्रृंगार की
बातों में रो जाते हैं।
सर्द सांसों से
खुशियों में
आंसुओं के
बीज बो जाते हैं।
और कितने तो
भीग जाने के डर से,
घरों में छुपकर सो जाते हैं।
यह भी कोई ज़िन्दगी है भला !
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कभी तेज़, कभी धीमी
कभी मूसलाधार
बेपरवाह हम और बारिश !
पानी से भरी सड़क पर
छप-छपाक कर चलना
छींटे उछालना
तन-मन भीग-भीग जाना
चप्पल पानी में बहाना
कभी भागना-दौड़ना
कभी रुककर
पेड़ों से झरती बूँदों को
अंजुरी में सम्हालना
बरसती बूंदों से
सिहरती पत्तियों को
सहलाना
चीड़-देवदार की
नुकीली पत्तियों से
झरती एक-एक बूँद को
निरखना
उतराईयों पर
तेज़ दौड़ते पानी से
रेस लगाना।
और फिर
रुकती-रुकती बरसात,
बादलों के बीच से
रास्ता खोजता सूरज
रंगों की आभा बिखेरता
मानों प्रकृति
नये कलेवर में
अवतरित होती है
एक नवीन आभा लिए।
हरे-भरे वृक्ष
मानों नहा-धोकर
नये कपड़े पहन कर
धूप सेंकने आ खड़े हों।