मौसम के रूप समझ न  आयें

कोहरा है या बादलों का घेरा, हम बनते पागल।

कब रिमझिम, कब खिलती धूप, हम बनते पागल।

मौसम हरदम नये-नये रंग दिखाता, हमें भरमाता,

मौसम के रूप समझ न  आयें, हम बनते पागल।