झूठी-सच्ची ख़बरें बुनते

नाम नहीं, पहचान नहीं, करने दो मुझको काम

क्यों मेरी फ़ोटो खींच रहे, मिलते हैं कितने दाम।

कहीं की बात कहीं करें और झूठी-सच्ची ख़बरें बुनते

समझो तुम, मिल-जुलकर चलता है घर का काम