जीवन चलता तोल-मोल से

सड़कों पर बाज़ार बिछा है

रोज़ सजाते, रोज़ हटाते।

आज  हरी हैं

कल बासी हो जायेंगी।

आस लिए बैठे रहते हैं

देखें कब तक बिक जायेंगी

ग्राहक आते-जाते

कभी ख़रीदें, कभी सुनाते।

धरा से उगती

धरा पर सजती

धरा पर बिकती।

धूप-छांव में ढलता जीवन

सांझ-सवेरे कब हो जाती।

तोल-मोल से काम चले

और जीवन चलता तोल-मोल से

यूँ ही दिन ढलते रहते हैं