एक पाती भाव भरी

अब हम सत्तर वर्ष के हो गये, एक क्या हज़ारों भाव भरी पाती स्मृति में उभर कर आ गईं। किस-किसकी बात करें आपसे। कभी तीन पैसे का पोस्ट कार्ड आता था, पांच पैसे का अन्तर्देशीय और बन्द लिफ़ाफ़े पर  दस पैसे का टिकट लगता था। जब घर में बन्द लिफ़ाफ़ा आता था तो पूरा घर चैकन्ना हो जाता था कि किसी का अत्यन्त महत्वपूर्ण पत्र आया है जो बन्द लिफ़ाफ़े में आया है।

मेरी पहली भावभरी पाती वह थी जो किसी पत्रिका में मेरी पहली कविता  प्रकाशित होने पर एक पाठक ने प्रशंसा पत्र भेजा था। पोस्टकार्ड था । उस समय तक पोस्ट कार्ड का मूल्य बढ़ चुका थाः दस पैसे। मेरे जीवन का वह पहली भाव भरी पाती थी जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है। दिनों-दिनों तक मैं उस पोस्ट कार्ड को छुपा-छुपाकर पढ़ती रहती थी। उसके बाद ऐसी कितनी ही भाव-भरी पाती आईं और मैं आह्लादित होती थी ऐसी पाती से। ऐसे पत्र पाठक के मन से लिखे होते थे, और उनका मैं उत्तर भी अवश्य देती थी। आज की तरह नहीं कि गूगल ने कुछ बने-बनाये शब्द दे दिये और हम उन्हें ही काॅपी-पेस्ट किये जा रहे हैं।