खालीपन का एहसास

 

घर के आलों में

दीवारों में,

कहीं कोनों में,

पुरानी अलमारियों में,

पुराने कपड़ों की तहों में

छिपाकर रखती रही हूं

न जाने कितने एहसास,

तह-दर-तह

समेटकर रखे थे मैंने

बेमतलब, बेवजह।

सर्दी-गर्मी,

होली-दीपावली पर

जब साफ़-सफ़ाई

होती है घर में,

सबसे पहले,

सब, एक होकर

उनकी ही छंटाई में लग जाते हैं,

कितना बेकार कचरा जमा कर रखा है घर में।

कितनी जगह रूकी है

इनकी वजह से,

कब काम आता है ये सब,

पूछते हैं सब मुझसे।

मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता कभी भी।

इसे मेरा समर्पण मानकर

मुझसे पूछे बिना

छंटाई हो जाती है।

घर में जगह बन जाती है।

मैं अपने भीतर भी

एक खालीपन का एहसास करती हूं

पर वहां कुछ नया जमा नहीं पाती।