सफ़लता की कुंजी

कुछ घोटाले कर गये होते, हम भी अमर हो गये होते

संसद में बैठे, गाड़ी-बंगला-पैंशन ले, विदेश बस गये होते

फिसड्डी बनकर रह गये, इस ईमानदारी से जीते जीते,

बुद्धिमानी की होती, जीते-जी मूर्ति पर हार चढ़ गये होते