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ज़िन्दगी जीना भूल जाते हैं
ज़िन्दगी में
तप, उपासना, साधना
ज्ञान, ध्यान, स्नान
किसी काम नहीं आतीं।
जीवन भर करते रहिए
मरते रहिए
कब उपलब्धियाँ
कैसे हाथ से
सरक जायेंगी
पता ही नहीं लगता।
ज़िन्दगी जीने से ज़्यादा
हम न जाने क्यों
लगे रहते हैं
तप, उपासना, साधना में
और ज़िन्दगी जीना भूल जाते हैं
वह सब पाने के पीछे भागने लगते हैं
जिसका अस्तित्व ही नहीं।
आभासी दुनिया में जीने लगते हैं,
पारलौकिकता को ढूँढने में
लगे रहते हैं
और लौकिक संसार के
असीम सुखों से
मुँह मोड़ बैठते हैं
न जीवन जीते हैं
और न जीने देते हैं।
और अपने जीवन के
अमूल्य दिन खो देते हैं
वह सब पाने के लिए
जिसका अस्तित्व ही नहीं।
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घन-घन-घन घनघोर घटाएं
घन-घन-घन घनघोर घटाएं,
लहर-लहर लहरातीं।
कुछ बूंदें बहकीं,
बरस-बरस कर,
मन सरस-सरस कर,
हुलस-हुलस कर,
हर्षित कर
लौट-लौटकर आतीं।
बूंदों का सागर बिखरा ।
कड़क-कड़क, दमक-दमक,
चपल-चंचला दामिनी दमकाती।
मन आशंकित।
देखो, झांक-झांककर,
कभी रंग बदलतीं,
कभी संग बदलतीं।
इधर-उधर घूम-घूमकर
मारूत संग
धरा-गगन पर छा जातीं।
रवि ने मौका ताना,
सतरंगी आकाश बुना ।
निरख-निरख कर
कण-कण को
नेह-नीर से दुलराती।
ठिठकी-ठिठकी-सी शीत-लहर
फ़र्र-फ़र्र करती दौड़ गई।
सर्र-सर्र-सर्र कुछ पत्ते झरते
डाली पर नव-संदेश खिले
रंगों से धरती महक उठी।
पेड़ों के झुरमुट में बैठी चिड़िया
की किलकारी से नभ गूंज उठा
मानों बोली, उठ देख ज़रा
कौन आया ! बसन्त आया!!!
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बेकरार दिल
दिल हो रहा बड़ा बेकरार
बारिश हो रही मूसलाधार
भीग लें जी भरकर आज
न रोक पाये हमें तेज़ बौछार
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हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि काकभुशुण्डि
काकभुशुण्डि की कथा बहुत रोचक है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इनका जन्म अयोध्या में शूद्र परिवार में हुआ था। ये अनन्य रामभक्त थे। ज्ञानी ऋषि थे, भगवान शिव का मंत्र प्राप्त कर महाज्ञानी बने किन्तु अभिमानी भी। इस अभिमान में उन्होंने अपने गुरु ब्राह्मण का एवं शिव का भी अपमान किया जिस कारण भगवान शिव ने उन्हें सर्प की अधर्म योनि में जाने के श्राप के साथ उपरान्त एक हज़ार योनियों में जन्म लेने का भी श्राप दिया। काकभुशुण्डि के गुरु ने शिव से उन्हें श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की। किन्तु शिव ने कहा कि वे श्रापमुक्त तो नहीं हो सकते किन्तु उन्हें इन जन्म-मरण में कोई कष्ट नहीं होगा, ज्ञान भी नहीं मिटेगा एवं रामभक्ति भी बनी रहेगी। इस तरह इन्हें अन्तिम जन्म ब्राह्मण का मिला। इस जन्म में वे ज्ञान प्राप्ति के लिए लोमश ऋषि के पास गये किन्तु वहां उनके तर्क-वितर्क से कुपित होकर लोमश ऋषि ने उन्हें चाण्डाल पक्षी कौआ बनने का श्राप दे दिया। बाद में लोमश ऋषि को अपने दिये श्राप पर पश्चाताप हुआ और उन्होंने कौए को वापिस बुलाकर राम-मंत्र दिया और इच्छा मृत्यु का वरदान भी। श्रीराम का मंत्र मिलने पर कौए को अपने इसी रूप से प्यार हो गया और वह कौए के रूप में ही रहने लगा, तभी से उन्हें काकभुशुण्डि नाम से जाना जाने लगा।
वेद और पुराणों के अनुसार काकभुशुण्डि न 11 बार रामायण और 16 बार महाभारत देखीं वह कल्प अर्थात जब तक यह संसार रहेगा वे उसके अन्त तक अपने शाश्वत रूप में जीवित रहेंगे। यह अमरता राम ने ही प्रदान की कि काल भी काकभुशुण्डि को नहीं मार सकता और वे इस कल्प के अन्त तक जीवित रहेंगे। इस शाश्वत आनन्द को काकभुशुण्डि समय यात्रा अर्थात Time Travel कहा जाता है।
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घाट-घाट का पानी
शहर में
चूहे बिल्लियों को सुला रहे हैं
कानों में लोरी सुना रहे हैं।
उधर जंगल में गीदड़ दहाड़ रहे हैं।
शेर-चीते पिंजरों में बन्द
हमारा मन बहला रहे हैं।
पढ़ाते थे हमें
शेर-बकरी
कभी एक घाट पानी नहीं पीते,
पर आज
एक ही मंच पर
सब अपनी-अपनी बीन बजा रहे हैं।
यह भी पता नहीं लगता
कब कौन सो जायेगा]
और कौन लोरी सुनाएगा।
अब जहां देखो
दोस्ती के नाम पर
नये -नये नज़ारे दिखा रहे हैं।
कल तक जो खोदते थे कुंए
आज साथ--साथ
घाट-घाट का
पानी पीते नज़र आ रहे हैं।
बच कर चलना ऐसी मित्रता से
इधर बातों ही बातों में
हमारे भी कान काटे जा रहे हैं।
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बेटियाँ धरा पर
माता-पिता तो
देना चाहते हैं
आकाश
अपनी बेटियों को
किन्तु वे
स्वयं ही
नहीं जान पाते
कब
उन्होंने
अपनी बेटियों के
सपनों को
आकाश में ही
छोड़ दिया
और उन्हें
उतार लाये
धरा पर
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और हम यूं ही लिखने बैठ जाते हैं कविता
आज ताज
स्वयं अपने साये में
बैठा है
डूबते सूरज की चपेट में।
शायद पलट रहा है
अपने ही इतिहास को।
निहारता है
अपनी प्रतिच्छाया,
कब, किसने,
क्यों निर्माण किया था मेरा।
एक कब्र थी, एक कब्रगाह।
प्रदर्शन था
सत्ता का, मोह का, धन का
अधिकार का
और शायद प्रेम का।
अथाह जलराशि में
न जाने क्या-क्या समाहित।
डूबता है मन, डूबते हैं भाव
काल के साथ
बदलते हैं अर्थ।
और हम यूं ही
लिखने बैठ जाते हैं कविता,
प्रेम की, विरह की, श्रृंगार की
और वेदना की।
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विश्वगुरू बनने की बात करें
विश्वगुरू बनने की बात करें, विज्ञान की प्राचीन कथाएं पढ़े हम शान से।
सवा सौ करोड़ में सवा लाख सम्हलते नहीं, रहें न जाने किस मान में।
अपने ही नागरिक प्रवासी कहलाते, विश्व-पर्यटन का कीर्तिमान बना
अब लोकल-वोकल की बात करें, यही कथाएं चल रहीं हिन्दुस्तान में।
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आप अकेली हैं
आप अकेली हैं?
सहयात्री का यह अटपटा-सा प्रश्न नीता को चकित कर गया।
दो सीट के कूपे में बैठी नीना ने सामने बैठे सहयात्री को फिर भी कुछ मुस्कुराकर और कुछ व्यंग्य से उत्तर दिया, जी हां, क्यों क्या हुआ, आपको कोई परेशानी ?
और नीना का कटु प्रतिप्रश्न, आपके साथ कौन है?
लगभग 45 वर्ष का वह सहयात्री अभी भी नीता को अलग-सी दृष्टि से देख रहा था, बोला, नहीं, नहीं, मैं तो इसलिए पूछ रहा था कि आप महिला होकर अकेली इतनी दूर जा रही हैं, किसी को साथ लेकर चलना चाहिए न आपको। फिर आपकी आयु और आजकल वैसे भी माहौल कहां ठीक है, 22 घंटे की यात्रा। कोई परेशानी हो तो आपको मुश्किल हो सकती है।
अब नीना का गुस्सा सदा की तरह सातवें आसमान पर था।
एकदम कटु स्वर में बोली, 22 घंटे की यात्रा तो आपके साथ है तो आपका कहने का अभिप्राय यह कि मुझे आपसे डरना चाहिए क्यों?
इससे पहले कि वह सहयात्री कुछ उत्तर दे, नीना वास्तव में फ़ट पड़ी, क्यों यही कह रहे हैं न आप कि मुझे आपसे डरना चाहिए।
आप तो एकदम ही नाराज़ हो गईं, मैं कोई ऐसा-वैसा नहीं हूॅं, मैं तो आपकी ही चिन्ता कर रहा था। महिलाओं की सुरक्षा की चिन्ता ही करते हैं हम तो। आप तो पता नहीं क्या गलत समझ बैठीं।
आप कौन लगते हैं मेरे जो मेरी चिन्ता कर रहे हैं?
वैसे आप भी तो अकेले ही हैं, आपके साथ कौन है? नीना ने पूछा।
नहीं, मुझे क्या परेशानी अकेले में। मैं तो अक्सर ही अकेले आता-जाता हूॅं, ।
अच्छा, जो परेशानी मुझे अकेली को हो सकती है, जिसके लिए आप मेरी इतनी चिन्ता कर रहे हैं क्या आपको नहीं हो सकती?
मुझे क्या परेशानी होगी मैडम। मैं तो आदमी हूॅं, परेशानी तो औरतों को होती है और उस अजनबी ने दांत निपोर दिये।
अब नीना असली मूड में आई और बड़ी सुन्दर मुस्कान से बोली, क्यों, आपको हार्ट अटैक, पैरालिसीस, ब्रेन हैमरेज, कहीं ठोकर, फ्ैक्चर नहीं हो सकता। और क्या आपके साथ कोई दुव्र्यवहार नहीं कर सकता।
और सर, मैं तो आपके कुछ किये बिना भी चिल्ला दूंगी कि यह व्यक्ति मेरे साथ दुव्र्यवहार कर रहा है , आपको अभी गाड़ी से नीचे उतार देंगे धक्के मारकर, किन्तु मैं आपके साथ कुछ भी करुॅं आपकी बात का तो कोई विश्वास ही नहीं करेगा, बोलिए करुॅं कुछ?
इतने में वहां से टी टी निकला।
वह आदमी चिल्लाया, सुनिए, किसी दूसरे कूपे में कोई सीट खाली है क्या, मेरी बदल सकते हैं क्या?
टी टी, चकित-सा दोनों को देख रहा था।
इस बीच नीना बोली, महाशय, हम औरतों की आप लोग चिन्ता न करें तो हम ज़्यादा सुरक्षित और निश्चिंत रहती हैं, आप बस अपना देखिए।
बदलवा लीजिए सीट या गाड़ी ही बदल लीजिए। कहीं कुछ हो न जाये आपके साथ।
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मेरा घर जलाता कौन है
घर में भी अब नहीं सुरक्षित, विचलित मन को यह बात बताता कौन है,
भीड़-तन्त्र हावी हो रहा, कानून की तो बात यहं अब समझाता कौन है,
कौन है अपना, कौन पराया, कब क्या होगा, कब कौन मिटेगा, पता नहीं
यू तो सब अपने हैं, अपने-से लगते हैं, फिर मेरा घर जलाता कौन है।