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अन्तर्मन की आवाजें अब कानों तक पहुंचती नहीं
सन्नाटे को चीरकर आती आवाजें अन्तर्मन को भेदती नहीं
यूं तो पत्ता भी खड़के, तो हम तलवार उठा लिया करते हैं
पर बडे़-बडे़ झंझावातों में उजडे़ चमन की बातें झकझोरती नहीं
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मुस्कुराहटें बांटती हूँ
टोकरी-भर मुस्कुराहटें बांटती हूँ।
जीवन बोझ नहीं, ऐसा मानती हूँ।
काम जब ईमान हो तो डर कैसा,
नहीं किसी का एहसान माँगती हूँ।
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मर्यादाओं की चादर ओढ़े
मर्यादाओं की चादर में लिपटी खड़ी है नारी
न इधर राह न उधर राह, देख रही है नारी
किसको पूछे, किससे कह दे मन की व्यथा
फ़टी-पुरानी, उधड़ी चादर ओढ़े खड़ी है नारी
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दो चाय पिला दो
प्रात की नींद से न अच्छा समय कोई
दो चाय पिला दो आपसे अच्छा न कोई
मोबाईल की टन-टन न हमें जगा पाये
कुम्भकरण से कम न जाने हमें कोई
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नेह के बोल
जल लाती हूँ पीकर जाना,
धूप बहुत है सांझ ढले जाना
नेह की छाँव तले बैठो तुम
सब आते होंगे, मिलकर जाना
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छोड़ी हमने मोह-माया
नहीं करने हमें
किसी के सपने साकार।
न देखें हमारी आयु छोटी
न समझे कोई हमारे भाव।
मां कहती
पढ़ ले, पढ़ ले।
काम कर ले ।
पिता कहते
बढ़ ले बढ़ ले।
सब लगाये बैठे
बड़ी-बड़ी आस।
ले लिया हमने
इस दुनिया से सन्यास।
छोड़ी हमने मोह-माया
हो गई हमारी कृश-काया।
हिमालय पर हम जायेंगे।
वहीं पर धूनी रमायेंगे।
आश्रम वहीं बनायेंगे।
आसन वहीं जमायेंगे।
चेले-चपाटे बनायेंगे।
सेवा खूब करायेंगे।
खीर-पूरी खाएंगें।
लौटकर घर न आयेंगे।
नाम हमारा अमर होगा,
धाम हमारा अमर होगा,
ज्ञान हमारा अमर होगा।
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इंसानियत गमगीन हुई है
जबसे मुट्ठी रंगीन हुई हैं,
तब से भावना क्षीण हुई हैं।
बात करते इंसानियत की
पर इंसानियत
अब कहां मीत हुई है।
रंगों से पहचान रहे,
हम अपनों को
और परख रहे परायों को,
देखो यहां
इंसानियत गमगीन हुई है।
रंगों को बांधे मुट्ठी में
इनसे ही अब पहचान हुई है।
बाहर से कुछ और दिखें
भीतर रंगों में तकरार हुई है।
रंगों से मिलती रंगीनियां
ये पुरानी बात हुई है।
बन्द मुट्ठियों से अब मन डरता है
न जाने कहां क्या बात हुई है।
चल मुट्ठियों को खोलें
रंग बिखेरें,
तू मेरा रंग ले ले,
मैं तेरा रंग ले लूं
तब लगेगा, कोई बात हुई है।
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न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो
न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो
न तुम बोले न मैं, मुस्कानों में क्यों बातें करते हो
अनजाने-अनपहचाने रिश्ते अपनों से अच्छे लगते हैं
कदम ठिठकते, दहलीज रोकती, यूं ही मन चंचल करते हो
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जब तक जीवन है मस्ती से जिये जाते हैं
कितना अद्भुत है यह गंगा में पाप धोने, डुबकी लगाने जाते हैं।
कितना अद्भुत है यह मृत्योपरान्त वहीं राख बनकर बह जाते हैं।
कितने सत्कर्म किये, कितने दुष्कर्म, कहां कर पाता गणना कोई।
पाप-पुण्य की चिन्ता छोड़, जब तक जीवन है, मस्ती से जिये जाते हैं।
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आकाश में अठखेलियां करते देखो बादल
आकाश में अठखेलियां करते देखो बादल
ज्यों मां से हाथ छुड़ाकर भागे देखो बादल
डांट पड़ी तो रो दिये,मां का आंचल भीगा
शरारती-से,जाने कहां गये ज़रा देखो बादल
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अपने कर्मों पर रख पकड़
चाहे न याद कर किसी को
पर अपने कर्मों से डर
न कर पूजा किसी की
पर अपने कर्मों पर रख पकड़ ।
न आराधना के गीत गा किसी के
बस मन में शुद्ध भाव ला ।
हाथ जोड़ प्रणाम कर
सद्भाव दे,
मन में एक विश्वास
और आस दे।