जीना चाहती हूं

छोड़ आई हूं

पिछले वर्ष की कटु स्मृतियों को

पिछले ही वर्ष में।

जीना चाहती हूं

इस नये वर्ष में कुछ खुशियों

उमंग, आशाओं संग।

ज़िन्दगी कोई दौड़ नहीं

कि कभी हार गये

कभी जीत गये

बस मन में आशा लिए

भावनाओं का संसार बसता है।

जो छूट गया, सो छूट गया

नये की कल्पना में

अब मन रमता है।

द्वार खोल हवाएं परख रही हूं।

अंधेरे में रोशनियां ढूंढने लगी हूं।

अपने-आपको

अपने बन्धन से मुक्त करती हूं

नये जीवन की आस में

आगे बढ़ती हूं।