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मैंने चिड़िया से पूछा
क्यों यूं ही दिन भर
चहक-चहक जाती हो
कुट-कुट, किट-किट करती
दिन-भर शोर मचाती हो ।
पलटकर बोली
तुमको क्या ?
मैंने कभी पूछा तुमसे
दिन भर
तुम क्या करती रहती हो।
कभी इधर-उधर
कभी उधर-इधर
कभी ये दे-दे
कभी वो ले ले
कभी इसकी, कभी उसकी
ये सब क्यों करती रहती हो।
-
कभी मैं बोली सूरज से
कहां तुम्हारी धूप
क्यों चंदा नहीं आये आज
कभी मांगा चंदा से किसी
रोशनी का हिसाब
कहां गये टिम-टिम करते तारे
कभी पूछा मैंने पेड़ों से
पत्ते क्यों झर रहे
फूल क्यों न खिले।
कभी बोली फूलों से मैं
कहां गये वो फूल रंगीले
क्यों नहीं खिल रहे आज।
क्यों सूखी हरियाली
बादल क्यों बरसे
बिजली क्यों कड़की
कभी पूछा मैंने तुमसे
मेरा घर क्यों उजड़ा
न डाल रही, न रहा घरौंदा
कभी की शिकायत मैंने
कहाँ सोयेंगे मेरे बच्चे
कहाँ से लाऊँगी मैं दाना-पानी।
मैं खुश हूँ
तुम भी खुश रहना सीखो
मेरे जैसे बनना सीखो
इधर-उधर टाँग अड़ाना बन्द करो
अपने मतलब से मतलब रख आनन्द करो।
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अनिच्छाओं को रोक मत
अनिच्छाओं को रोक मत प्रदर्शित कर
कोई रूठता है तो रूठने दे, तू मत डर
कब तक औरों की खुशियों को ढोते रहेंगे
जो मन न भाये उससे अपने को दूर रख
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प्रेम-प्यार के मधुर गीत
मौसम बदला, फूल खिले, भंवरे गुनगुनाते हैं।
सूरज ने धूप बिखेरी, पंछी मधुर राग सुनाते हैं।
जी चाहता है भूल जायें दुनियादारी के किस्से,
चलो मिलकर प्रेम-प्यार के मधुर गीत गाते हैं।
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मानसून की आहट
मानसून की आहट डराने लगी है
गलियों में तालाब दिखाने लगी है
मेंढक टर्राते हैं रात भर नींद कहाँ
मच्छरों की भिन-भिन सताने लगी है।
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जीवन के अनमोल पल
यादों की गठरियों में कुछ अनमोल रत्न हुआ करते हैं
कभी कभी कुछ रिसते-से जख्म भी हुआ करते हैं
इन सबके बीच झूलता है मन,क्या करे कोई
जीवन के पल जैसे भी हों,सब अनमोल हुआ करते है।
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दिखाने को अक्सर मन हंसता है
चोट कहां लगी थी,
कब लगी थी,
कौन बतलाए किसको।
दिल छोटा-सा है
पर दर्द बड़ा है,
कौन बतलाए किसको।
गिरता है बार-बार,
और बार-बार सम्हलता है।
बहते रक्त को देखकर
दिखाने को अक्सर मन हंसता है।
मन की बात कह ले पगले,
कौन समझाए उसको।
न डर कि कोई हंसेगा,
या साथ न देगा कोई।
ऐसे ही दुनिया चलती है,
जीवन ऐसे ही चलता है,
कौन समझाए उसको।
आंसू भीतर-भीतर तिरते हैं,
आंखों में मोती बनते हैं,
तिनका अटका है आंख में,
कहकर,
दिखाने को अक्सर मन हंसता है।
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आंखों देखी दुनिया
कथा है
कि मिट्टी खाने पर
यशोदा ने कृष्ण को
मुँह खोलकर
दिखाने के लिए कहा था
और यशोदा ने
कृष्ण के मुँह में
ब्रह्माण्ड के दर्शन किये थे।
कुछ ऐसा ही ब्रह्माण्ड
हमारी आंखों के भीतर भी है
जिसे हम देख नहीं पाते,
किसी और को क्या दिखाना
हम स्वयं ही
समझ भी नहीं पाते।
बड़ी प्रचलित कहावत है
आंखों देखी दुनिया।
किन्तु आश्चर्य कि
हम दुनिया को
कभी भी खुली आंखों से
देख नहीं पाते।
जब भी दुनिया को समझना होता है
हम आंखें बन्द कर लेते हैं
और शिकायत करते हैं
हमारी समझ से बाहर है यह दुनिया।
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मन के पिंजरे खोल रे मनवा
मन विहग!
मन के पिंजरे खोल रे मनवा,
मन के बंधन तोड़ रे मनवा।
कुछ तो टूटेगा,
कुछ तो बिखरेगा,
कुछ तो बदलेगा।
गगन विशाल,
उड़ान बड़ी है,
पंख मिले छोटे,
कुछ कतरे गये।
कुछ टूटे,
कुछ बिखर गये।
चाहत न छोड़,
मन को न मोड़,
उड़ान भर,
आज नहीं तो कल,
कल नहीं तो कभी,
या फिर अभी
चाहतों को जोड़,
मन को न मोड़।
उड़ान भर।
न डर, बस
मन के पिंजरे खोल रे मनवा,
मन के बंधन तोड़ रे मनवा।
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मन में सुबोल वरण कर
तर्पण कर,
मन अर्पण कर,
कर समर्पण।
भाव रख, मान रख,
प्रण कर, नमन कर,
सबके हित में नाम कर।
अंजुरि में जल की धार
लेकर सत्य की राह चुन।
मन-मुटाव छांटकर
वैर-भाव तिरोहित कर।
अपनों को स्मरण कर,
उनके गुणों का मनन कर।
राहों की तलाश कर
जल-से तरल भाव कर।
कष्टों का हरण कर,
मन में सुबोल वरण कर।
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हम सब तो बस बन्दर हैं
नाचते तो सभी हैं
बस
इतना ही पता नहीं लगता
कि डोरी किसके हाथ में है।
मदारी कौन है और बन्दर कौन।
बहुत सी गलतफहमियां रहती हैं मन में।
खूब नाचते हैं हम
यह सोच कर , कि देखों
कैसा नाच नचाया हमने सामने वाले को।
लेकिन बहुत बाद में पता लगता है कि
नाच तो हम ही रहे थे
और सामने वाला तो तमाशबीन था।
किसके इशारे पर
कब कौन नाचता है
और कौन नचाता है पता ही नहीं लगता।
इशारे छोड़िए ,
यहां तो लोग
उंगलियों पर नचा लेते हैं
और नाच भी लेते हैं।
और भक्त लोग कहते हैं
कि डोरी तो उपर वाले के हाथ में है
वही नचाता है
हम सब तो बस बन्दर हैं।
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अपनापन आजमाकर देखें
चलो आज यहां ही सबका अपनापन आजमाकर देखें
मेरी तुकबन्दी पर वाह वाह की अम्बार लगाकर देखें
न मात्रा, न मापनी, न गणना, छन्द का ज्ञान है मुझे
मेरे तथाकथित मुक्तक की ज़रा हवा निकालकर देखें