ताकता रह जाता है मानव

लहरें उठ रहीं

आकाश को छूने चलीं

बादल झुक रहे

लहरों को दुलारते

धरा को पुकारते।

गगन और धरा पर

जल और अनिल

उलझ पड़े

बदरी रूठ-रूठ उमड़ रही

रंग बदरंग हो रहे

कालिमा घिर रही

बवंडर उठ रहे

ताकता रह जाता है मानव।