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हमें
रचनाकारों से
ज्ञात हुआ
दिल का भी दिन होता है।
असमंजस में हैं हम
अपना दिल देखें
या सामने वाले का टटोलें।
एक छोटे-से दिल को
रक्त के आवागमन से
समय नहीं मिलता
और हम, उस पर
पता नहीं
क्या-क्या थोप देते हैं।
हर बात हम दिल के नाम
बोल देते हैं।
अपना दिल तो आज तक
समझ नहीं आया
औरों के दिलों का
पूरा हिसाब रखते हैं।
दिल टूटता है
दिल बिखरता है
दिल रोता है
दिल मसोसता है
दिल प्रेम-प्यार के
किस्से झेलता है।
विरह की आग में
तड़पता है
जलता है दिल
भावों में भटकता है दिल
सपने भी देखता है
ईष्र्या-द्वेष से भरा यह दिल
न जाने
किन गलियों में भटकता है।
तूफ़ान उठता है दिल में
ज्वार-भाटा
उछालें मारता है।
वैसे कभी-कभी
हँसता-गाता
गुनगुनाता, खिलखिलाता
मस्ती भी करता है।
कैसा है यह दिल
नहीं सम्हलता है।
और इतने बोझ के बाद
जब रक्त वाहिनियों में
रक्त जमता है
तब दिमाग खनकता है।
यार !
जिसे ले जाना है
ले जाओ मेरा दिल
हम
बिना दिल ही
चैन की नींद सो लेंगे।
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मन में एक जंगल है
मन में एक जंगल है
विचारों का, भावों का।
एक झंझावात की तरह आते हैं
अन्तर्मन को झिंझोड़ते हैं,
तहस-नहस करते हैं
और हवा के झोंके के साथ
अचानक
कहीं दूर उड़ जाते हैं।
कभी शब्द दे पाती हूं
और कभी नहीं।
लिखे शब्द पिघलने लगते हैं
आसमानी बादलों की तरह।
कहीं दूर उड़ जाते हैं
पक्षी की तरह।
हर बार एक कही-अनकही
आधी-अधूरी कहानी रह जाती है।
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बुढ़िया सठिया गई है
प्रेम मनुहार की बात करती हूं वो मुझे दवाईयों का बक्सा दिखाता है।
तीज त्योहार पर सोलह श्रृंगार करती हूं वो मुझे आईना दिखाता है।
याद दिलाती हूं वो यौवन के दिन,छिप छिप कर मिलना,रूठना-मनाना ।
कहता है बुढ़िया सठिया गई है, पागलखाने का रास्ता दिखाता है।
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शोर भीतर की आहटों को
बाहर का शोर
भीतर की आहटों को
अक्सर चुप करवा देता है
और हम
अपने भीतर की आवाज़ों-आहटों को
अनसुना कर
आगे निकल जाते हैं,
अक्सर, गलत राहों पर।
मन के भीतर भी एक शोर है,
खलबली है, द्वंद्व है,
वाद-विवाद, वितंडावाद है
जिसकी हम अक्सर
उपेक्षा कर जाते हैं।
अपने-आप को सुनना ही नहीं चाहते।
कहीं डरते हैं
क्योंकि सच तो वहीं है
और हम
सच का सामना करने से
डरते हैं।
अपने-आप से डरते हैं
क्योंकि
जब भीतर की आवाज़ें
सन्नाटें का चीरती हुई
बाहर निकलेंगी
तब कुछ तो अनघट घटेगा
और हम
उससे ही बचना चाहते हैं
इसीलिए से डरते हैं।
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अपना साहस परखता हूँ मैं
आसमान में तिरता हूँ मैं।
धरा को निहारता हूँ मैं।
अपना साहस परखता हूँ मैं।
मंज़िल पाने के लिए
खतरों से खेलता हूँ मैं।
यूँ भी जीवन का क्या भरोसा
लेकिन अपने भरोसे
आगे बढ़ता ही बढ़ता हूँ मैं।
हवाएँ घेरती हैं मुझे,
ज़माने की हवाओं को
परखता हूँ मैं।
साथी नहीं, हमसफ़र नहीं
अकेले ही
अपनी राहों को
तलाशता हूँ मैं।
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चिड़िया से पूछा मैंने
चिड़िया रानी क्या-क्या खाती
राशन-पानी कहाँ से लाती
मुझको तो कुछ न बतलाती
थाली-कटोरी कहाँ से पाती
चोंच में तिनका लेकर घूमे
कहाँ बनाया इसने घर
इसके घर में कितने मैंम्बर
इधर-उधर फुदकती रहती
डाली-डाली घूम रही
फूल-फूल को छू रही
मैं इसके पीछे भागूं
कभी नीचे आती
कभी ऊपर जाती
मेरे हाथ कभी न आती।
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ज़िन्दगी कोई गणित नहीं
ज़िन्दगी
जब कभी कोई
प्रश्नचिन्ह लगाती है,
उत्तर शायद पूर्वनिर्धारित होते हैं।
यह बात
हम समझ ही नहीं पाते।
किसी न किसी गणित में उलझे
अपने-आपको महारथी समझते हैं।
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द्वार खुले हैं तेरे लिए
विदा तो करना बेटी को किन्तु कभी अलविदा न कहना
समाज की झूठी रीतियों के लिए बेटी को न पड़े कुछ सहना
खीलें फेंकी थीं पीठ पीछे छूट गया मेरा मायका सदा के लिए
हर घड़ी द्वार खुले हैं तेरे लिए,उसे कहना,इस विश्वास में रहना
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रोशनियां अब उधार की बात हो गई हैं
रोशनियां
अब उधार की बात हो गई हैं।
कौन किसकी छीन रहा
यह तहकीकात की बात हो गई है।
गगन पर हो
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किसने किसका रूप लिया
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प्रतियोगिता की बात हो गई है।
कौन किस पर कर रहा अधिकार
यह समझने-समझाने की बात हो गई है।
कौन लघु और कौन गुरू
नज़र-नज़र की बात हो गई है।
कौन जीता, कौन हारा
यह विवाद की बात हो गई है।
कौन पहले आया, कौन बाद में
किसने किसको हटाया
यह तकरार की बात हो गई है।
अब आप से क्या छुपाना
अपनी हद से बाहर की बात हो गई है।
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हंसते-हंसते जी लेना
हंसते-हंसते जी लेना
खुशियों के घूंट पी लेना
क्या होता है जग में
हमको क्या लेना-देना
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जीवन की पुस्तकें
कुछ बुढ़ा-सी गई हैं पुस्तकें।
भीतर-बाहर
बिखरी-बिखरी-सी लगती हैं,
बेतरतीब।
.
किन्तु जैसे
बूढ़ी हड्डियों में
बड़ा दम होता है,
एक वट-वृक्ष की तरह
छत्रछाया रहती है
पूरे परिवार के सुख-दुख पर।
उनकी एक आवाज़ से
हिलती हैं घर की दीवारें,
थरथरा जाते हैं
बुरी नज़र वाले।
देखने में तो लगते हैं
क्षीण काया,
जर्जर होते भवन-से।
किन्तु उनके रहते
द्वार कभी सूना नहीं लगता।
हर दीवार के पीछे होती है
जीवन की पूरी कहानी,
अध्ययन-मनन
और गहन अनुभवों की छाया।
.
जीवन की इन पुस्तकों को
चिनते, सम्हालते, सजाते
और समझते,
जीवन बीत जाता है।
दिखने में बुढ़उ सी लगती हैं,
किन्तु दम-खम इनमें भी होता है।