Share Me
चलते-चलते मन ठोकर खाता
कदम रुकते, मन सहम जाता
भावों की नदिया में घाव हुए
समझ नहीं, मन का किससे नाता
Share Me
Write a comment
More Articles
इक फूल-सा ख्वाबों में
जब भी
उनसे मिलने को मन करता है
इक फूल-सा ख्वाबों में
खिलता नज़र आता है।
पतझड़ में भी
बहार की आस जगती है
आकाश गंगा में
फूलों का झरना नज़र आता है।
फूल तो खिले नहीं
पर जीवन-मकरन्द का
सौन्दर्य नज़र आता है।
तितलियों की छोटी-छोटी उड़ान में
भावों का सागर
चांद पर टहलता नज़र आता है।
चिड़िया की चहक में
न जाने कितने गीत बजते हैं
उनके मिलन की आस में
मन गीत गुनगुनाता नज़र आता है।
सांझ ढले
जब मन स्मृतियों के साये में ढलता है
तब लुक-छुप करती रंगीनियों में
मन बहकता नज़र आता है।
जब-जब तेरी स्मृतियों से
बच निकलने की कोशिश की
मन बहकता-सा नज़र आता है।
Share Me
कुछ सपने बोले थे कुछ डोले थे
कागज की कश्ती में
कुछ सपने थे
कुछ अपने थे
कुछ सच्चे, कुछ झूठ थे
कुछ सपने बोले थे
कुछ डोले थे
कुछ उलझ गये
कुछ बिखर गये
कुछ को मैंने पानी में छोड़ दिया
कुछ को गठरी में बांध लिया
पानी में कश्ती
इधर-उधर तिरती
हिलती
हिचकोले खाती
कहती जाती
कुछ टूटेंगे
कुछ नये बनेंगे
कुछ संवरेंगे
गठरी खुल जायेगी
बिखर-बिखर जायेगी
डरना मत
फिर नये सपने बुनना
नई नाव खेना
कुछ नया चुनना
बस तिरते रहना
बुनते रहना
बहते रहना
Share Me
हमें भी मुस्काराना आ गया
फूलों को खिलते देख हमें भी मुस्काराना आ गया
गरजते बादलों को सुन हमें भी जताना आ गया
बहती नदी की धार ने सिखाया हमें चलते जाना
उंचे पर्वतों को देख हमें भी पांव जमाना आ गया
Share Me
ज़िन्दगी की पथरीली राहों में
सुना था
पत्थरों में फूल खिलते हैं,
किन्तु यह लिखते समय
यह क्यों नहीं याद रहता
कि फूलों से ही
फल मिलते हैं।
ज़िन्दगी की
पथरीली राहों में,
कांटों से उलझकर,
मिट्टी से सुलझकर,
बस फूल खिलते रहें,
फल ज़रूर मिलेंगें।
Share Me
किसे अपना समझें किसे पराया
किसे अपना समझें किसे पराया
मन के द्वार पर पहरे लगाकर बैठे हैं आज।
कोई भाव पढ़ न ले, गांठ बांध कर बैठे हैं आज।
किसे अपना समझें, किसे पराया, समझ नहीं,
अपनों को ही पराया समझ कर बैठे हैं आज।
Share Me
कहां गये वे नेता -वेत्ता
कहां गये वे नेता -वेत्ता
चूल्हे बांटा करते थे।
किसी मंच से हमारी रोटी
अपने हित में सेंका करते थे।
बड़े-बड़े बोल बोलकर
नोटों की गिनती करते थे।
झूठी आस दिलाकर
वोटों की गिनती करते थे।
उन गैसों को ढूंढ रहे हम
किसी आधार से निकले थे,
कोई सब्सिडी, कोई पैसा
चीख-चीख कर हमको
मंचों से बतलाया करते थे।
वे गैस कहां जल रहे
जो हमारे नाम से लूटे थे।
बात करें हैं गांव-गांव की
पर शहरों में ही जाया करते थे।
आग कहीं भीतर जलती है
चूल्हे में जलता है दिल
अब हमको भरमाने को
कला, संस्कृति, परम्परा,
मां की बातें करते हैं।
सबको चाहे नया-नया,
मेरे नाम पर लीपा-पोती।
पंचतारा में भोजन करते
मुझको कहते चूल्हे में जा।
Share Me
आज मुझे देश की याद सता गई
सोच में पड़ गई
आज न तो गणतन्त्र दिवस है,
न स्वाधीनता दिवस, न शहीदी दिवस
और न ही किसी बड़े नेता की जयन्ती ।
न ही समाचारों में ऐसा कुछ देखा
कि देश की याद सता जाती।
फिर आज मुझे
देश की याद क्यों सता गई ।
कुछ गिने-चुने दिनों पर ही तो
याद आती है हमें अपने देश की,
जब एक दिन का अवकाश मिलता है।
और हम आगे-पीछे के दिन गिनकर
छुट्टियां मनाने निकल जाते हैं
अन्यथा अपने स्वार्थ में डूबे,
जोड़-तोड़ में लगे,
कुछ भी अच्छा-बुरा होने पर
सरकार को कोसते,
अपना पल्ला झाड़ते
चाय की चुस्कियों के साथ राजनीति डकारते
अच्छा समय बिताते हैं।
पर सोच में पड़
आज मुझे देश की याद क्यों सता गई
पर कहीं अच्छा भी लगा
कि अकारण ही
आज मुझे देश की याद सता गई ।
Share Me
देखो किसके कितने ठाठ
एक-दो-तीन-चार
पांच-छः-सात-आठ
देखो किसके कितने ठाठ
इसको रोटी, उसको दूध
किसी को पानी
किसी को भूख
किसकी कितनी हिम्मत
देखें आज
देखो तुम सब
हमरे ठाठ
किके्रट टीम तो बनी नहीं
किस खेल में होते आठ
अपनी टीम बनाएंगे
मौज खूब उड़ायेंगे
सस्ते में सब निपटायेंगे
पढ़ना-लिखना हुआ है मंहगा
बना ले घर में ही टीम
पढ़ोगे-लिखोगे होंगे खराब
खेलोगे-कूदोगे बनोगे नवाब
Share Me
सूरज को रोककर मैंने पूछा
सूरज को रोककर
मैंने पूछा
चलोगे मेरे साथ ?
-
हँस दिया सूरज
मैं तो चलता ही चलता हूँ।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
कभी रुका नहीं
कभी थका नहीं।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
दिन-रात घूमता हूँ
सबके हाल पूछता हूँ।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
रंगीनियों को सहेजता हूँ।
रंगों को बिखेरता हूँ।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
चँदा-तारे मेरे साथी
कौन तुम्हारे साथ ?
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
बादल-वर्षा, आंधी-तूफ़ान
ग्रीष्म-शिशिर सब मेरे साथी।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
विस्तार गगन का
किसने नापा।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
Share Me
बाधाएं राहों से कैसे हटतीं
विनम्रता से सदा दुनिया नहीं चलती।
समझौतों से सदा बात यहां नहीं बनती।
हम रोते हैं, जग हंसता है ताने कसता है,
आंख दिखा, तभी राहों से बाधाएं हैं हटतीं।