हरपल बदले अर्थ यहाँ

शब्दों के अब अर्थ कहाँ, सब कुछ लगता व्यर्थ यहाँ

कहते कुछ हैं, करते कुछ है, हरपल बदले अर्थ यहाँ

भाव खो गये, नेह नहीं, अपनेपन की बात नहीं अब

किसको मानें, किसे मनायें, इतनी अब सामर्थ्य कहाँ