खुशियों के पल

खुशियों के पल

बड़े अनमोल हुआ करते हैं।

पर पता नहीं

कैसे होते हैं,

किस रंग,

किस ढंग के होते हैं।

शायद अदृश्य

छोटे-छोटे होते हैं।

हाथों में आते ही

खिसकने लगते हैं

बन्द मुट्ठियों से

रिसने लगते हैं।

कभी सूखी रेत से

दिखते हैं

कभी बरसते पानी-सी

धरा को छूते ही

बिखर-बिखर जाते हैं।

कभी मन में उमंग,

कभी अवसाद भर जाते हैं।

पर कैसे भी होते हैं

पल-भर के भी होते हैं

जैसे भी होते हैं

अच्छे ही होते हैं।