बेनाम वीरों को नमन करूं

किस-किस का नाम लूं

किसी-किस को छोड़ दूं

कहां तक गिनूं,

किसे न नमन करूं

सैंकड़ों नहीं लाखों हैं वे

देश के लिए मर मिटे

इन बेनाम वीरों को

क्‍यों न नमन करूं।

कोई घर बैठे कर्म कर रहा था

तो कोई राहों में अड़ा था

किसी के हाथ में बन्‍दूक थी

तो कोई सबके आगे

प्रेरणा-स्रोत बन खड़ा था।

कोई कलम का सिपाही था

तो कोई राजनीति में पड़ा था।

कुछ को नाम मिला

और कुछ बेनाम ही

मर मिटे थे

सालों-साल कारागृह में पड़े रहे,  

लाखों-लाखों की एक भीड़ थी

एक ध्‍वज के मान में

देश की शान में

मर मिटी थी

इसी बेनाम को नमन करूं

इसी बेनाम को स्‍मरण करूं।