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क्यों ढूंढते हो दीप तले अंधेरा जब ज्योति प्रज्वलित है
क्यों देखते हो मुड़कर पीछे, जब सामने प्रशस्त पथ है
जीवन में अमा और पूर्णिमा का आवागमन नियत है
अंधेरे में भी आंख खुली रखें ज़रा, प्रकाश की दमक सरस है
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इक नल लगवा दे भैया
कहां है अब पनघट
कहां है अब कृष्ण कन्हैया
क्यो इन सबमें
अब उलझा है मन दैया
इतना ही है तू
कृष्ण कन्हैया
तो मेरे घर में
इक नल लगवा दे भैया।
युग बदल गया
तू भी अपना यह वेश बदल,
न छेड़ बैठना किसी को
गोपी समझ के
कारागार के द्वार खुले हैं दैया।
गीत-संगीत सब बदल गये
रास-बिहारी खिसक गये
ढोल की ताल अब बहक गई
रास-बिहारी चले गये
किचन में कितना काम पड़ा है मैया
इतना ही है तू
कृष्ण कन्हैया
तो अपनी अंगुली से
मेरे घर के सारे काम
करवा दे रे भैया।
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मनोरम प्रकृति का यह रूप
कितना मनोरम दिखता है
प्रकृति का यह रूप।
मानों मेरे मन के
सारे भाव चुराकर
पसर गई है
यहां अनेक रूपों में।
कभी हृदय
पाषाण-सा हो जाता है
कभी भाव
तरल-तरल बहकते हैं।
लहरें मानों
कसमसाती हैं
बहकती हैं
किनारों से टकराती हैं
और लौटकर
मानों
मन मसोसकर रह जाती हैं।
जल अपनी तरलता से
प्रयासरत रहता है
धीरे-धीरे
पाषाणों को आकार देने के लिए।
हरी दूब की कोमलता में
पाषाण कटु भावों-से
नेह-से पिघलने लगते हैं
एक छाया मानों सान्त्वना
के भाव देती है
और मन हर्षित हो उठता है।
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नेह-जलधार हो
जीवन में
कुछ पल तो ऐसे हों
जो केवल
मेरे और तुम्हारे हों।
जलधि-सी अटूट
नेह-जलधार हो
रेत-सी उड़ती दूरियों की
दीवार हो।
जीवन में
कुछ पल तो ऐसे हों
जो केवल
मेरे और तुम्हा़रे हों।
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मानवता को मुंडेर पर रख
आस्था, विश्वास,श्रद्धा को हम निर्जीव पत्थरों पर लुटा रहे हैं
अधिकारों के नाम पर जाति-धर्म,आरक्षण का विष पिला रहे हैं
अपने ही घरों में विष-बेल बीज ली है,जानते ही नहीं हम
मानवता को मुंडेर पर रख,अपना घर फूंक ताली बजा रहे हैं
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हमारा व्यवहार हमारी पहचान
हमारा व्यवहार हमारी पहचान Our Behavior Our Identity
निःसंदेह हमारा व्यवहार हमारी पहचान है।
किन्तु कभी आपने सोचा है कि हमारा व्यवहार कैसे बनता है? व्यवहार क्या है? हम किसी से कैसे बात करते हैं, कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, अपने मनोभावों को कैसे प्रकट करते हैं, यही व्यवहार है। हँसना, बोलना, बात करना, प्रतिक्रिया देना, हाँ-ना, सहायता करना, न करना, प्रसन्नता, नाराज़गी, सम्मान-अपमान, सभी व्यवहार ही तो हैं।
हर व्यक्ति का प्रयास रहता है कि वह सामने वाले से अच्छा व्यवहार करे कि उसकी छवि अच्छी बनी रहे। किन्तु क्या सदैव ऐसा हो पाता है? नहीं।
कारण, बहुत बार हमारा व्यवहार सामने वाले के व्यवहार की प्रतिच्छाया होता है। क्योंकि हम एक साधारण इंसान हैं, कोई पहुँचे हुए धर्मात्मा नहीं, इस कारण सामने वाले का व्यवहार हमारे व्यवहार को बदल सकता है।
जैसे मैं अपना ही उदाहरण देती हूँ। मैं नहीं कह सकती कि मेरा व्यवहार बहुत अच्छा है, ये तो मुझे जानने वाले ही बता सकते हैं। किन्तु मेरे व्यवहार में तात्कालिक प्रतिक्रिया है
मैं अपने साथ बात अथवा व्यवहार करने वाले के प्रति प्रतिक्रिया बहुत जल्दी देती हूँ। जैसा कि आप जानते हैं हमारे समाज में अपशब्दों का एवं और अनेक तरीकों से महिलाओं के साथ शाब्दिक, सांकेतिक दुव्र्यवहार होता है। ऐसे समय मेरा व्यवहार बदल जाता है। मैं अत्यधिक क्रोधित एवं आक्रामक हो जाती हूँ, मेरी सहनशक्ति मेरा साथ छोड़ देती है और मैं तत्काल प्रतिक्रिया करती हूँ। जो निश्चित रूप से क्रोध एवं प्रतिकार ही होती है।
ऐेसे समय में मेरा व्यवहार मेरा अपना नहीं होता , सामने वाले के व्यवहार की प्रतिच्छाया होता है। मेरा यह व्यवहार अथवा स्वभाव मेरा स्थायी व्यवहार नहीं है किन्तु मेरी पहचान अवश्य है कि मैं गलत का विरोध करने का साहस रखती हूँ।
अतः मेरी दृष्टि में हमारा व्यवहार परिस्थितियों, कार्य-क्षेत्र, हमारे आस-पास के वातावरण, लोगों पर बहुत निर्भर करता है और सम्भव है हमारा ऐसा व्यवहार स्थायी न हो और हमारी पहचान न हो।
अतः किसी के व्यवहार और उस व्यवहार से उसकी पहचान मानने के लिए किसी भी व्यक्ति की कोई एक बात से उसे समझा और जाना नहीं जा सकता, एक जीवन जीना पड़ता है किसी के व्यवहार को समझने के लिए और पहचान बनाने के लिए।
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जल की बूंदों का आचमन कर लें
सावन की काली घटाएं मन को उजला कर जाती हैं
सावन की झड़ी मन में रस-राग-रंग भर जाती है
पत्तों से झरते जल की बूंदों का आचमन कर लें
सावन की नम हवाएं परायों को अपना कर जाती हैं
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शब्दों से जलाने वाले
आग लगाने वाले यहां बहुत हैं
बिना आग सुलगाने वाले बहुत हैं
बुझाने की बात तो करना ही मत
शब्दों से जलाने वाले यहां बहुत हैं
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आज़ादी की क्या कीमत
कहां समझे हम आज़ादी की क्या कीमत होती है।
कहां समझे हम बलिदानों की क्या कीमत होती है।
मिली हमें बन्द आंखों में आज़ादी, झोली में पाई हमने
कहां समझे हम राष्ट््भक्ति की क्या कीमत होती है।
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क्यों करें किसी से गिले
कांटों के संग फूल खिले
अनजाने कुछ मीत मिले
सारी बातें आनी जानी हैं
क्यों करें किसी से गिले
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राधिके सुजान
अपनी तो हाला भी राधिके सुजान होती है
हमारी चाय भी उनके लिए मद्यपान होती है
कहा हमने चलो आज साथ-साथ आनन्द लें बोले
तुम्हारी सात की,हमारी सात सौ की कहां बात होती है