पावस की पहली बूंद

पावस की पहली बूंद

धरा तक पहुंचते-पहुंचते ही

सूख जाती है।

तपती धरा

और तपती हवाएं

नमी सोख ले जाती हैं।

अब पावस की पहली बूंद

कहां नम करती है मन।

कहां उमड़ती हैं

मन में प्रेम-प्यार,

मनुहार की बातें।

समाचार डराते हैं,

पावस की पहली बूंद

आने से पहले ही

चेतावनियां जारी करते हैं।

सम्हल कर रहना,

सामान बांधकर रख लो,

राशन समेट लो।

कभी भी उड़ा ले जायेंगी हवाएँ।

अब पावस की बूंद,

बूंद नहीं आती,

महावृष्टि बनकर आती है।

कहीं बिजली गिरी

कहीं जल-प्लावन।

क्या जायेगा

क्या रह जायेगा

बस इसी सोच में

रह जाते हैं हम।

क्या उजड़ा, क्या बह गया

क्या बचा

बस यही देखते रह जाते हैं हम

और अगली पावस की प्रतीक्षा

करते हैं हम

इस बार देखें क्या होगा!!!