ये आँखें

ये आँखें भी बहुत बड़ी चीज़ हैं। ये तो सब ही जानते हैं कि देखने के काम आती हैं किन्तु दिखाने के भी बहुत काम आती हैं, बस आपको दिखानी आनी चाहिए। आज सब सोचने लगी, आँखों के मुहावरों पर तो न जाने कितने मुहावरे सामने आ गये।

आँखों ही आँखों में हँसना,  आँख मारना, आँखों में धूल झोंकना, आँखें बिछाना, आँख का कांटा, आँख का तारा, आँख लगना, आँख लड़ना, आँखें चुराना और न जाने कितने ही।

किन्तु कुछ मुहावरे तो बिल्कुल मेरे काम के निकले। जैसे

आँख धुंधलाना, आँख दिखाना, आँखों पर चरबी चढ़ना, आँख पर पर्दा पड़ना,  आँखें बन्द होना, सीधी आँख न देखना और अन्त में आँख खुलना।

नववर्ष का उपहार लेकर आईं हमारी आँखें हमारे लिए। आँख धुंधलाने लगी। आँख देखने वाले को आँख दिखाई। किन्तु वे कहाँ डरने वाले थे। उन्होंने हमें ही आँख दिखा दी। बोले,  आँखों पर चरबी चढ़ गई है, आँखों पर पर्दा पड़ गया है।

और नववर्ष में उन्होंने हमारी एक आँख बन्द कर दी। अब न सीधी आँख देखना, न आँख मारना, न आँख लड़ना न लड़ाना। वाह! आँख के भीतर एक लैंस, एक चश्मा भी उपहार में मिला।  मोबाईल, टी. वी., पी. सी. सब बन्द। और अन्त में जब ठीक से आँख खुली तब भी ठीक से अनुभव करने में दो-तीन दिन तो लग ही गये।

इसे कहते हैं cataract 

अब एक आँख तो सुधर गई, दूसरी भी पीछे नहीं। तो चलिए उसके लिए भी ये सारे मुहावरे याद रखते हैं, अगले सप्ताह के लिए।