जीवन का आनन्द ले

प्रकृति ने पुकारा मुझे,

खुली हवाओं ने

दिया सहारा मुझे,

चल बाहर आ

दिल बहला

न डर

जीवन का आनन्द ले

सुख के कुछ पल जी ले।

वृक्षों की लहराती लताएँ

मन बहलाती हैं

हरीतिमा मन के भावों को

सहला-सहला जाती है।

मन यूँ ही भावनाओं के

झूले झूलता है

कभी हँसता, कभी गुनगुनाता है।

गुनगुनी धूप

माथ सहला जाती है

एक मीठी खुमारी के साथ

मानों जीवन को गतिमान कर जाती है।