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कुछ भावों के
शब्द नहीं होते
और कुछ शब्द
भावहीन होते हैं
तरसता है मन।
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पवित्रता के मापदण्ड
पवित्रता के
मापदण्ड होते हैं
कहीं कम
कहीं ज़्यादा होते हैं।
लेकिन हर
किसी के लिए
नहीं होते हैं।
फिर
तोलते हैं
न जाने
किस तराजू में
हर बार
नये-नये माप
और दण्ड होते हैं।
जानती हूँ
अधिकांश को
मेरी यह बात
समझ नहीं आई होगी
क्योंकि
युगों-युगों से
बन रहे
इन माप और दण्डों को
आज तक
कौन समझ पाया है
जिसके माथे जड़े हैं
वह भी
वास्तविकता
कहाँ जान पाया है।
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कामधेनु कुर्सी बनी
समुद्र मंथन से मिली सुरभि, मनोकामनाएं पूरी थी करती,
राजाओं, ऋषियों की स्पर्धा बनी, मान दिलाया थी करती,
गायों को अब कौन पूछता, अब कुर्सी की बात करो यारो,
कामधेनु कुर्सी बनी, इसके चैपायों की पूजा दुनिया करती।
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प्रेम-प्यार की बात न करना
प्रेम-प्यार की बात न करना,
घृणा के बीज हम बो रहे हैं।
.
सम्बन्धों का मान नहीं अब,
दीवारें हम अब चिन रहे हैं।
.
काले-गोरे की बात चल रही,
चेहरों को रंगों से पोत रहे हैं ।
.
अमीर-गरीब की बात कर रहे,
पैसे से दुनिया को तोल रहे हैं ।अ
.
कौन है सच्चा, कौन है झूठा,
बिन जाने हम कोस रहे हैं।
.
पढ़ना-लिखना बात पुरानी
सुनी-सुनाई पर चल रहे हैं।
.
सर्वधर्म समभाव भूल गये,
भेद-भाव हम ढो रहे हैं।
.
अपने-अपने रूप चुन लिए,
किस्से रोज़ नये बुन रहे हैं।
-
राजनीति का ज्ञान नहीं है
चर्चा में हम लगे हुए हैं।
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धन्यवाद देता हूँ ईश्वर को
मेरी खुशियों को
नज़र न लगे किसी की
धन्यवाद देता हूँ
ईश्वर को
मुझे वनमानुष ही रहने दिया
इंसान न बनाया।
न घर की चिन्ता
न घाट की
न धन की चिन्ता
न आवास की
न जमाखोरी
न धोखाधड़ी, न चोरी
न तेरी न मेरी
न इसकी न उसकी
न इधर की, न उधर की
न बच्चे बोझ
न बच्चों पर बोझ
यूँ ही मदमस्त रहता हूँ
अपनी मर्ज़ी से
खाता-पीता हूँ
मदमस्त सोता हूँ।
ईष्र्या हो रही है न मुझसे
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नेह-जलधार हो
जीवन में
कुछ पल तो ऐसे हों
जो केवल
मेरे और तुम्हारे हों।
जलधि-सी अटूट
नेह-जलधार हो
रेत-सी उड़ती दूरियों की
दीवार हो।
जीवन में
कुछ पल तो ऐसे हों
जो केवल
मेरे और तुम्हा़रे हों।
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हिन्दी के प्रति
शिक्षा
अब ज्ञान के लिये नहीं
लाभ के लिए
अर्जित की जाती है,
और हिन्दी में
न तो ज्ञान दिखाई देता है
और न ही लाभ।
बस बोलचाल की
भाषा बनकर रह गई है,
कहीं अंग्रेज़ी हिन्दी में
और कहीं हिन्दी
अंग्रेज़ी में ढल गई है।
कुछ पुरस्कारों, दिवसों,
कार्यक्रमों की मोहताज
बन कर रह गई है।
बात तो बहुत करते हैं हम
हिन्दी चाहिए, हिन्दी चाहिए
किन्तु
कभी आन्दोलन नहीं करते
दसवीं के बाद
क्यों नहीं
अनिवार्य पढ़ाई जाती है हिन्दी।
प्रदूषित भाषा को
चुपचाप पचा जाते हैं हम।
सरलता के नाम पर
कुछ भी डकार जाते हैं हम।
गूगल अनुवादक लगाकर
हिन्दी लेखक होने का
गर्व पालते हैं हम।
प्रचार करते हैं
वैज्ञानिक भाषा होने का,
किन्तु लेखन और उच्चारण के
बीच के सम्बन्ध को
तोड़ जाते हैं हम।
कंधों पर उठाये घूम रहे हैं
अवधूत की तरह।
दफ़ना देते हैं
अपराधी की तरह।
और बेताल की तरह,
हर बार
वृक्ष पर लटक जाते हैं
कुछ प्रश्न अनुत्तरित।
हर वर्ष, इसी दिन
चादर बिछाकर
जितनी उगाही हो सके
कर लेते हैं
फिर वृक्ष पर टंग जाता है बेताल
अगली उगाही की प्रतीक्षा में।
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हमारा छोटा-सा प्रयास
ये न समझना
कि पीठ दिखाकर जा रहे हैं हम
तुमसे डरकर भाग रहे हैं हम
चेहरे छुपाकर जा रहे हैं हम।
क्या करोगे चेहरे देखकर,
बस हमारा भाव देखो
हमारा छोटा-सा प्रयास देखो
साथ-साथ बढ़ते कदमों का
अंदाज़ देखो।
तुम कुछ भी अर्थ निकालते रहो
कितने भी अवरोध बनाते रहो
ठान लिया है
जीवन-पथ पर यूँ ही
आगे बढ़ना है
दुःख-सुख में
साथ निभाना है।
बस
एक प्रतीक-मात्र है
तुम्हें समझाने का।
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शब्द नहीं, भाव चाहिए
शब्द नहीं, भाव चाहिए
अपनों को अपनों से
प्यार चाहिए
उंची वाणी चाहे बोलिए
पर मन में एक संताप चाहिए
क्रोध कीजिए, नाराज़गी जताईये,
पर मन में भरपूर विश्वास चाहिए,
कौन किसका, कब कहां
दिखाने की नहीं,
जताने की नहीं,
समय आने पर
अपनाने की बात है।
न मांगने से मिलेगा,
न चाहने से मिलेगा,
सच्चे मन से
भावों का आदान-प्रदान चाहिए,
आदर-सत्कार तो कहने की बात है,
शब्द नहीं, भाव चाहिए,
अपने-पराये का भेद भूलकर
बस एक भाव चाहिए।
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कुछ सपने
भाव भी तो लौ-से दमकते हैं
कभी बुझते तो कभी चमकते हैं
मन की बात मन में रह जाती है
कुछ सपने आंखों में ही दरकते हैं
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कच्चे घड़े-सी युवतियां
कच्चे घड़े-सी होती हैं
ये युवतियां।
घड़ों पर रचती कलाकृति
न जाने क्या सोचती हैं
ये युवतियां।
रंग-बिरंगे वस्त्रों से सज्जित
श्रृंगार का रूप होती हैं
ये युवतियां।
रंग सदा रंगीन नहीं होते
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
हाट सजता है,
बाट लगता है,
ठोक-बजाकर बिकता है,
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
कला-संस्कृति के नाम पर
बैठक की सजावट बनते हैं]
सजते हैं घट
और चाहिए एक ओढ़नी
जानती हैं सब
केवल, ये युवतियां।
बातें आसमां की करते हैं
पर इनके जीवन में तो
ठीक से धरा भी नहीं है
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
कच्चे घड़ों की ज़िन्दगी
होती है छोटी
इस बात को
सबसे ज़्यादा जानती हैं
ये युवतियां।
चाहिए जल की तरलता, शीतलता
किन्तु आग पर सिंक कर
पकते हैं घट
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।