दिवास्वप्न

सपनों का संसार भी

अद्भुत है।

बिना पूछे चले आते हैं

और न जाने कितने दिनों तक

स्मृतियों में छाये रहते हैं।

सपने देखने के लिए

कोई ज़रूरी नहीं

कि सोया ही जाये,

सपनों की दुनिया में जाने के लिए

जागना भी पड़ता है

कभी रोना

तो कभी हँसना पड़ता है।

न कोई कथानक,

न कोई लिपि, न पांडुलिपि

एक अनजान संसार से

जूझना पड़ता है।

कभी अच्छा लगता है

कभी मन रोता है।

जो मुझे नहीं चाहिए

वह क्यों दिखाई देने लगता है

और चाहतें

क्यों मृत हो जाती हैं।