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एक लाठी के सहारे
चलते
छोटे कद के
एक आम आदमी ने
कभी बांध ली थी
सारी दुनिया
अपने पीछे
बिना पुकार के भी
उसके साथ
चले थे
लाखों -लाखों लोग
सम्मिलित थे
उसकी तपस्या में
निःस्वार्थ, निःशंक।
वह हमें दे गया
एक स्वर्णिम इतिहास।
आज वह न रहा
किन्तु
उसकी मूर्तियाँ
हैं हमारे पास
लाखों-लाखों।
कुछ लोग भी हैं
उन मूर्तियों के साथ
किन्तु उसके
विचारों की भीड़
उससे छिटक कर
आज की भीड़ में
कहीं खो गई है।
दीवारों पर
अलंकृत पोस्टरों में
लटक रही है
पुस्तकों के भीतर कहीं
दब गई है।
आज
उस भीड़ पर
भीड़-तंत्र हावी हो गया है।
.
अरे हाँ !
आज उस मूर्ति पर
माल्यार्पण अवश्य करना।
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थक गई हूं इस बनावट से
जीवन में
और भी बहुत रोशनियां हैं
ज़रा बदलकर देखो।
सजावट की
और भी बहुत वस्तुएं हैं
ज़रा नज़र हटाकर देखो।
प्रेम, प्रीत, अश्रु, सजन
विरह, व्यथा, श्रृंगार,
इन सबसे हटकर
ज़रा नज़र बदलकर देखो,
थक गई हूं
इस बनावट से
ज़रा मुझे भी
आम इंसान बनाकर देखो।
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ज़िन्दगी लगती बेमानी है
जन्म की अजब कहानी है, मरण से जुड़ी रवानी है।
श्मशान घाट में जगह नहीं, खो चुके ज़िन्दगानी हैं।
पंक्तियों में लगे शवों का टोकन से होगा संस्कार,
फ़ुटपाथ पर लगी पंक्तियां, ज़िन्दगी लगती बेमानी है।
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मन गीत गुने
मृदंग बजे
सुर-साज सजे
मन-मीत मिले
मन गीत गुने
निर्जन वन में
वन-फूल खिले
अबोल बोले
मन-भाव बने
इस निर्जन में
इस कथा कहे
अमर प्रेम की
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इंसानों से काम करेंगें
इंसानों में रहते हैं तो इंसानों से काम करेंगें
आग जलाई तुमने हम सेंककर शीत हरेंगे
बाहर झड़ी लगी है, यहीं बितायेंगे दिन-रात
यहीं बैठकर रोटी-पानी खाकर पेट भरेंगे।
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सरकार यहां पर सोती है
पत्थरों को पूजते हैं, इंसानियत सड़कों पर रोती है।
बस मन्दिर खुलवा दो, मौत सड़कों पर होती है।
मेहनतकश मज़दूरों को देख-देखकर दिल दहला है।
चुप रहना, शोर न करना, सरकार यहां पर सोती है।
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कानून तोड़ना हक है मेरा
जीत हार की बात न करना
गाड़ी यहां अड़ी हुई है।
कितने आगे कितने पीछे,
किसकी आगे, किसकी पीछे,
जांच अभी चली हुई है।
दोपहिए पर बैठे पांच,
चौपहिए में दस-दस बैठें,
फिर दौड़ रहे बाजी लेकर,
कानून तोड़ना हक है मेरा
देखें, किसकी दाल यहां गली हुई है।
गली-गली में शोर मचा है
मार-काट यहां मची हुई है।
कौन है राजा, कौन है रंक
जांच अभी चली हुई है।
राजा कहता मैं हूं रंक,
रंक पूछ रहा तो मैं हूं कौन
बात-बात में ठनी हुई है।
सड़कों पर सैलाब उमड़ता
कौन सही है कौन नहीं है,
आज यहां हैं कल वहां थे,
क्यों सोचे हम,
हमको क्या पड़ी हुई है।
कल हम थे, कल भी होंगे,
यही समझकर
अपनी जेब भरी हुई है।
अभी तो चल रही दाल-रोटी
जिस दिन अटकेगी
उस दिन हम देखेंगे
कहां-कहां गड़बड़ी हुई है।
अभी क्या जल्दी पड़ी हुई है।
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ठहरी-ठहरी-सी है ज़िन्दगी
सपनों से हम डरने लगे हैं।
दिल में भ्रम पलने लगे हैं ।
ठहरी-ठहरी-सी है ज़िन्दगी
अपने ही अब खलने लगे हैं।
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झूला झुलाये जिन्दगी
कहीं झूला झुलाये जिन्दगी
कभी उपर तो कभी नीचे
लेकर आये जिन्दगी
रस्सियों पर झूलती
दूर से तो दिखती है
आनन्द देती जिन्दगी
बैठना कभी झूले पर
आकाश और धरा
एक साथ दिखा देती है जिन्दगी
कभी हाथ छूटा, कभी तार टूटी
तो दिन में ही
तारे दिखा देती है जिन्दगी
सम्हलकर बैठना जरा
कभी-कभी सीधे
उपर भी ले जाती है जिन्दगी
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ठिठुरी ठिठुरी धूप है कुहासे से है लड़ रही
ठिठुरी ठिठुरी धूप है, कुहासे से है लड़ रही
भाव भी हैं सो रहे, कलम हाथ से खिसक रही
दिन-रात का भाव एकमेक हो रहा यहां देखो
कौन करे अब काम, इस बात पर चर्चा हो रही
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समानता का भाव
बस एक इंसानियत का भाव जगाना होगा।
समानता का भाव सबके मन में लाना होगा।
मानवता को बांटकर देश प्रगति नहीं करते,
हर तरह का भेद-भाव अब मिटाना होगा।